संजय मग्गू
बांग्लादेश में बुधवार को अंतरिम सरकार के कर्ताधर्ता मोहम्मद यूनुस ने सर्वदलीय बैठक के बाद जब यह कहा कि भारत बांग्लादेश में सांस्कृतिक आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, तो यह भारत के खिलाफ सीधी टिप्पणी थी। भारत ने पिछले चार महीनों में जिस तरह के धैर्य का परिचय दिया है, वह यूनुस को नहीं दिखाई दिया। भारत ने अपना मुंह तब ही खोला, जब बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए, मंदिरों को ध्वस्त किया गया। सच तो यह है कि जब से मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार के मुखिया बने हैं, तब से वह चीन के हाथों में खेल रहे हैं। चीन तो पहले भी खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ मिलकर करता रहा है। जब-जब बांग्लादेश में खालिदा जिया की सरकार रही है, तब तक बांग्लादेश में चीन की घुसपैठ बढ़ी है और जिया ने भारत विरोधी रवैया अख्तियार किया है। आज भी कमोबेश वैसे ही हालात हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी का समर्थन हासिल है। जमात-ए-इस्लामी अपने गठन काल से ही भारत विरोधी रहा है। उससे तो भारत को न पहले कोई उम्मीद थी और न अब है। कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पहले भी वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों के खिलाफ बोलती और हिंसक गतिविधियों को अंजाम देती आई है। पिछले चार महीनों से यूनुस का भारत के प्रति जो रवैया रहा है, वह काफी निराशाजनक है। दोनों देशों के बीच के संबंध लगभग टूटने के कगार पर हैं। यदि यूनुस सन 1971 में पाकिस्तान से अलग होने के दौरान भारत के हस्तक्षेप की बात कर रहे हैं, तो उन्हें इतिहास का अध्ययन करना चाहिए। यदि उन दिनों भारत ने बीच में हस्तक्षेप नहीं किया होता तो शायद आज बांग्लादेश का अस्तित्व ही नहीं होता। वह पाकिस्तान का ही एक हिस्सा बनकर रह जाता, जैसा पहले था। एक देश के रूप में स्वतंत्र होने के बाद से लेकर पिछले चार महीने तक भारत ने बांग्लादेश की मदद ही की है, बदले में उससे कुछ लिया नहीं है। इस बात को मोहम्मद यूनुस भी जानते होंगे, लेकिन चीन और पाकिस्तान की कठपुतली बने यूनुस शायद ही इस बात को स्वीकार कर पाएं। दरअसल, यूनुस बांग्लादेश के चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हैं। वह चार महीने पहले बांग्लादेश में पैदा हुए हालात के चलते अंतरिम सरकार के सर्वेसर्वा बनाए गए हैं। ऐसी स्थिति में वह जानते हैं कि भारत से उन्हें असंवैधानिक तरीके से कोई मदद नहीं मिलने वाली है। वहीं चीन और पाकिस्तान जैसे देशों को भारत के खिलाफ मौका चाहिए। इसलिए इन दोनों देशों ने यह मौका लपक लिया है। वैसे भारत से संबंध खराब करके बांग्लादेश को कोई फायदा होने वाला नहीं है। भारत बांग्लादेश की जो मदद कर सकता था, वह चीन नहीं कर सकता है। बांग्लादेश की सीमा का एक बहुत बड़ा भाग भारत के मिलता है, इसलिए बांग्लादेश को मजबूरन एक दिन भारत की शरण में आना होगा। लेकिन तब तक शायद हालात काफी बिगड़ चुके होंगे और भारत भी शायद उतनी सदाशयता दिखा पाने में सक्षम न हो।
भारत से संबंध बिगाड़ कर अपना ही नुकसान करेगा बांग्लादेश
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