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युवाओं को बरबाद कर रहे हैं ऑनलाइन गैम्बलिंग-बेटिंग ऐप्स

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संजय मग्गू
पब्लिक गैम्ब्लिंग एक्ट, 1867 के तहत सट्टेबाजी और जुआ सख्त रूप से वर्जित है और देश भर के अधिकांश क्षेत्रों में इसे अवैध माना जाता है। इसके बावजूद गेमिंग की आड़ में कुछ आॅनलाइन सट्टेबाजी प्लेटफार्म्स और ऐप्स इसको बढ़ावा दे रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक की आॅनलाइन बेटिंग और गैम्बलिंग हर साल होती है। भारत सरकार के सख्त कानून के बावजूद सट्टेबाजी प्लेटफार्म्स और ऐप्स चोरी छिपे अपने मकसद में कामयाब हो रही हैं। भारत में आॅनलाइन सट्टेबाजी का बाजार अगले कुछ वर्षों में 8.59  प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ने का अनुमान है। माना जाता है कि हमारे देश में सबसे ज्यादा सट्टा क्रिकेट खेल में लगाया जाता है। आईपीएल जैसे खेलों के दौरान गैम्बलिंग और बेटिंग अपने चरम पर होता है। लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों में गैम्बलिंग और बेटिंग को कानूनी मान्यता प्राप्त है। अमेरिका और यूरोपीय देशों में खेलों और अन्य चीजों पर दांव लगाने का ट्रेंड लगातार बढ़ता जा रहा है। एक आंकड़े के मुताबिक इसी साल अमेरिका में 12 लाख करोड़ रुपये के दांव लगाए गए हैं। दरअसल, गैम्बलिंग यानी जुआ खेलने की परंपरा सदियों पुरानी है। दुनिया के हर देश में यह किसी न किसी रूप में सदियों से मौजूद रही है। हमारे देश में महाभारत की एक प्रसिद्ध घटना जुआ खेलने से जुड़ी हुई है। गांधार नरेश शकुनि से जुआ खेलने के दौरान युधिष्ठिर अपना सारा राजपाट हार गए थे। बाद में कौरवों के उकसाने पर धर्मराज युधिष्ठिर अपनी पत्नी द्रौपदी को ही दांव पर लगा बैठे  थे और पराजित हुए। जुआ खेलने का परिणाम एक दिन बहुत भयानक निकला और कुरुक्षेत्र में एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें न जाने कितने लोग मारे गए। न जाने कितने राज्य तबाह हुए। यह सही है कि महाभारत युद्ध का जुआ खेलने की घटना ही इकलौता कारण नहीं था, लेकिन यह भी एक कारण था, इसे कैसे भूला जा सकता है। सदियों तक हमारे देश में इसी घटना की याद दिलाकर समाज के बड़े बुजुर्ग अपने बच्चों को जुए की लत से दूर रखने का प्रयास करते थे। कुछ सफल हो जाते थे, तो कुछ नहीं होते थे। लेकिन आज सब कुछ आॅनलाइन हो जाने से घर में ही पता नहीं चलता है कि कमरे में सबके बीच बैठा परिवार का सबसे छोटा लड़का आॅनलाइन गैम्बलिंग में लगा हुआ है। अब तो स्टेडियम या अन्य जगहों पर जाने की भी जरूरत नहीं रही है। सब कुछ घर बैठे हो रहा है। कई बार तो परिवार वालों को पता तब चलता है जब कोई अपनी औकात से ज्यादा की बेटिंग लगा लेता है और हार जाता है। पश्चिमी देशों में भले ही इन कामों को कानूनी मान्यता मिली हुई हो, लेकिन हमारे देश में सिर्फ उन्हीं खेलों को आॅनलाइन खेलने की अनुमति है जिसमें पैसे का कोई रोल न हो। जिसमें किसी प्रकार का दांव न लगाया जाता हो। इसके बावजूद कुछ गेमिंग कंपनियां और ऐप्स अपने मकसद में कामयाब हो रही हैं। इसके चलते युवा पीढ़ी तबाह और बरबाद हो रही है। इस पर रोक लगाने की आवश्यकता है।

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