संजय मग्गू
बिहार में बीपीएससी यानी बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा को रद्द करने की मांग को लेकर पिछले 18 दिसंबर से हजारों अभ्यर्थी पटना में लाठी-डंडे खा रहे हैं। पानी की बौछारें झेल रहे हैं। पिछली 18 दिसंबर से लेकर आज तक प्रदर्शनकारी युवा तीन बार बर्बरता से पीटे जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय या प्रादेशिक स्तर पर होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर कोई न कोई विवाद खड़ा हो रहा है। ज्यादातर मामलों में पेपर लीक होने, पेपर की आंसर शीट गलत होने या फिर नार्मलाइजेशन के खिलाफ युवा उठ खड़े होते हैं। बिहार के भी युवा नार्मलाइजेशन के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। अब सवाल यह है कि नार्मलाइजेशन है क्या जिसको लेकर इतनी हायतौबा मचाई जा रही है। जब कोई परीक्षा कई पालियों में कराई जाती है तो सभी पालियों के औसत नंबरों को सामान्य कर दिया जाता है। यदि कोई परीक्षा दो पालियों में आयोजित की गई है, तो किसी पाली के प्रश्नपत्र में आसान सवाल पूछे गए और दूसरी पाली में थोड़े कठिन सवाल आ गए। ऐसी स्थिति में पहली पाली में दो सौ में से औसत अंक 160 आए और दूसरी पाली में 150 अंकस तो दोनों दिनों की परीक्षा के आधार पर सभी छात्रों के अंक को नार्मलाइज करके 155 के आसपास कर दिया जाता है। इस सिस्टम में उन छात्रों का नुकसान होता है जिन्होंने 160 अंक हासिल किया था। नवंबर में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के खिलाफ भी प्रयागराज में छात्रों ने बड़ा आंदोलन किया था। इन छात्रों ने भी लाठी डंडे खाए, पानी की बौछारें झेली और फिर आयोग को झुकना पड़ा। प्रांतीय सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा को दोबारा कराने का आयोग को आश्वासन देना पड़ा। पिछले कई वर्षों से देश की बड़ी परीक्षाओं की विफलता ने सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं कि हमारे देश परीक्षा प्रणाली चरमरा क्यों रही है? लगभग हर राज्य में प्रांतीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की परीक्षाएं सवालों के घेरे में हैं। इसका कारण यह माना जा रहा है कि परीक्षा निकाय यानी परीक्षा संचालित करने वाली संस्थाएं देश में कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट करना चाहती हैं। पेपर बनाने से लेकर उन्हें जांचने तक का काम मशीनों को दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति में पेपर जांचने पर गड़बड़ी के चांस बहुत ज्यादा होते हैं। गणित को छोड़कर बाकी विषयों में मशीन में सेट आंसर से थोड़ा बहुत इधर उधर होने पर नंबर कट जा रहे हैं। सवाल भी आब्जेक्टिव टाइप के होते हैं। यह स्थिति युवाओं को परेशान करने वाली है। इस सिस्टम से आयोजित होने वाली परीक्षाओं से किसी भी राज्य का युवा संतुष्ट नहीं है। यही वजह है कि नीट-यूजी, इंजीनियरिंग, सीयूईटी, यूजीसी-नेट, फोर इयर इंटीग्रेटेड टीचर एजुकेशन प्रोग्राम, यूूपीएससी जैसी परीक्षाओं पर अब सवाल उठने लगे हैं। यदि इन समस्याओं का हल जल्दी ही नहीं निकाला गया, तो युवाओं का असंतोष क्या रूप लेगा, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है।
देश भर में आखिर चरमरा क्यों रही है परीक्षा पद्धति
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