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प्रकृति में भी प्रेम ही शाश्वत है, घृणा नहीं

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संजय मग्गू
शाश्वत सत्य प्रेम है घृणा? कभी कभी यह सवाल में जरूर उठता होगा। यदि प्रकृति के आधार पर कहा जाए, तो प्रेम ही सत्य है। घृणा का प्रकृति में कोई स्थान नहीं है। संतानोत्पत्ति के लिए भी वासना मिश्रित प्रेम की जरूरत होती है। यह प्रेम किसी भी उम्र में हो सकता है। अभी हाल की ही घटना है। अमेरिका के राज्य पेंसिल्वेनिया के सबसे बड़े शहर फिलाडेल्फिया एक दंपति विवाह के बंधन में बंधे हैं। दूल्हे की उम्र सौ साल है, तो वहीं दुल्हन की उम्र एक सौ दो साल। इसी साल 19 मई को बर्नी लिटमैन (100 साल)और मार्जोरी फिटरमैन (102 साल) ने शादी की है। अब सवाल यह है कि इन्होंने शादी करके क्या हासिल कर लिया? इतनी उम्र में जब दोनों एक दूसरे का ख्याल नहीं रख सकते हैं, तो फिर शादी का क्या मतलब है? शादी चाहे पाश्चात्य सभ्यता में हो या पूर्वी सभ्यता में, एक सामाजिक संस्कार है जो दो वयस्क लोगों को एक साथ रहने का अधिकार देता है। दोनों नौ साल पहले एक कास्ट्यूम पार्टी में मिले थे और जल्दी ही दोनों ने महसूस किया कि उन दोनों को एक दूसरे से  प्रेम हो गया है। सच पूछिए, तो प्रेम उम्र, जाति, धर्म, समय या राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक परिस्थितियों का दास नहीं होता है। बस, यह हो जाता है। किसको पता था कि राजस्थान के सबसे शक्तिशाली शासक कहे जाने वाले राणा सांगा की पुत्र वधु मीरां को कृष्ण से प्रेम हो जाएगा। लेकिन हुआ और ऐसा हुआ कि उन्हें कृष्ण के प्रेम में मायका और ससुराल दोनों त्यागने पड़े। प्रेम दीवानी मीरां कहां-कहां नहीं भटकी, लेकिन जब प्रेम का ज्वार चढ़ा, तो प्रेम ने सब कुछ भुला दिया। राजकुल की मर्यादा, मायका और ससुराल की प्रतिष्ठा श्रीकृष्ण के प्रेम के आगे सब कुछ नगण्य हो गई। मीरां का प्रेम तो भगवान के साथ हुआ था, लेकिन प्रेम चाहे भगवान के साथ हो या फिर किसी इंसान के प्रति, बस पावन हो, तो प्रणम्य हो जाता है। युद्ध और नरसंहार की कहानियां भले ही भुला दी जाएं, लेकिन प्रेम कहानियां तब तक सुनी-सुनाई और पढ़ी-पढ़ाई जाती रहेंगी, जब तक मानव समाज रहेगा। क्योंकि प्रेम ही जीवन का सबसे बड़ा प्राप्य है। प्रेम कहानियां कभी नहीं मरती हैं। मैं यह नहीं कहता कि बर्नी और मार्जोरी की यह प्रेम कथा अमर हो जाएगी। शायद दो दिन बाद इन्हें कोई याद नहीं रखेगा, लेकिन प्रेम हमेशा याद रखा जाएगा। घृणा, अहंकार जैसी भावनाएं रखने वाले कभी स्वतंत्र रूप से याद नहीं किए जाते हैं। यह प्रेम और भाईचारे की कहानियां के बीच खलपात्र की तरह याद किए जाते हैं। प्रकृति में सब ओर प्रेम ही प्रेम बिखरा पड़ा है। जिधर भी नजर दौड़ाइए, यदि आप देख पाने में सक्षम हैं, तो आपको कण-कण में प्रेम ही दिखाई देगा। पशुओं में भी प्रेम दिखाई देगा। पशुओं में भी घृणा और क्रोध जैसी भावनाएं स्थायी नहीं होती हैं, लेकिन उनमें प्रेम स्थायी होता है। यदि आपके घर में पाले गए पशु का ही आचरण देखें। वह क्रोध या घृणा भले ही कुछ क्षण के लिए प्रदर्शित करे, लेकिन आपके प्रति प्यार हमेशा प्रदर्शित होता रहता है। उसके हर कृत्य में प्रेम की झलक मिलेगी।

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