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महिला कुली के रूप में आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी दुर्गा

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देश में ऐसे कई अवसर आए हैं जब महिलाओं ने अपने हौसले और संघर्ष से आत्मनिर्भरता की अनोखी दास्तान लिख दी है। फिर चाहे वह आदित्य एल1 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर उनकी भूमिका हो या फिर एक आॅटो रिक्शा ड्राइवर के रूप में उनका काम हो। आज देश का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं ने अपनी सशक्त भूमिका अदा न की हो। ऐसी ही एक युवा महिला कुली दुर्गा और उसके संघर्ष की कहानी है, जो किसी भी चुनौतियों से हार नहीं मानने की प्रेरणा देती है।

मध्यप्रदेश के बैतूल रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की मदद के लिए तत्पर रहने वाली 25 वर्षीय दुर्गा का संघर्ष बाहर से सिर्फ इतना दिखाई देता है कि वह रेल यात्रियों के सामान को ट्रेन में चढ़ाने या उतारने का काम करती हैं। लेकिन इस संघर्ष के पीछे उसका एक और संघर्ष है, जो पुरुष प्रधान समाज को प्रेरणा देने वाला है। उसके संघर्ष को इसलिए भी जानना जरूरी है, क्योंकि आज के परिवेश में युवा पीढ़ी मामूली चुनौतियों के सामने हार मानकर अपने अमूल्य जीवन को समाप्त करने जैसा कदम उठा लेती है। लेकिन दुर्गा ने ऐसी ही चुनौतियों से घबराने की जगह उसका डटकर मुकाबला किया।

करीब 10 वर्ष पूर्व माता-पिता के देहांत के समय दुर्गा की उम्र मात्र 15 वर्ष थी। परिवार के नाम पर उसके साथ विधवा बड़ी बहनें और उनके बच्चे हैं। इसमें से एक बहन की मृत्यु भी हो चुकी है। परिवार की आय के लिए उसने कुली का काम शुरू किया। हालांकि वह स्वयं मोतियाबिंद की शिकार है। उसकी एक आंख का आॅपरेशन हो चुका है और दूसरी आंख का होना बाकी है। इसके बावजूद वह कुली का काम करना नहीं छोड़ती है। सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक बैतूल रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्मों पर दौड़ती-भागती है। इससे महीने के आठ से 10 हजार रुपये की आमदनी हो पाती है। इन्हीं चंद रुपयों से वह अपनी जिंदगी की खुशियां खरीदती है।

लेकिन अब समय के साथ उसके सामने अपना घर बसाने की चुनौती भी है। जिसमें कुली का काम रुकावट बन रहा है। दुर्गा बताती है कि विवाह योग्य उम्र हो चुकी है। कुछ लड़के पक्ष के लोगों से रिश्तों की बात हुई, लेकिन कुली के काम के चलते रिश्ता नहीं हो रहा है। लड़के पक्ष के लोगों का कहना है कि विवाह तभी होगा, जब वह कुली का काम छोड़ देगी। जिसके लिए वह तैयार नहीं है क्योंकि उसके इसी काम से बच्चों की परवरिश जुड़ी हुई है।

दुर्गा कहती है कि यदि मैंने काम छोड़ दिया तो मेरे मां बनने से पहले तीन बच्चों का जीवन संकट में पड़ सकता है और मैं ऐसा नहीं होने देना चाहती। वह कहती है कि अपनी बहनों के बच्चों के जीवन को अंधेरे में छोड़कर वह घर नहीं बसा सकती। हालांकि वह यह भी स्वीकार करती है कि कुछ लड़के वाले ऐसे भी मिले, जो कुली का काम जारी रखते हुए उसके साथ विवाह के लिए राजी हुए थे, लेकिन दुर्गा को उनकी नीयत पर शक था। इसलिए उसने उन रिश्तों को ठुकरा दिया।

दरअसल दुर्गा के पिता मुन्ना बोरवर स्वयं एक सफल कुली थे और बैतूल स्टेशन पर ही सेवाएं देते थे। उनका बिल्ला नंबर-11 था, जो उनकी मृत्यु के बाद उनकी सबसे छोटी बेटी और बैतूल रेलवे स्टेशन की एकमात्र युवा महिला कुली दुर्गा बोरवर के पास आ गई। दुर्गा ने इस बिल्ला नंबर को पाने में काफी मेहनत की है। 2017 में उसके पिता का निधन हो गया था और कुछ महीने के अंतराल में उसकी मां भी चल बसी थी। माता-पिता दोनों ही मेहनती थे। उसकी दोनों बहनों का विवाह उसके पिता कर चुके थे। लेकिन जल्द ही दोनों बहनें विधवा भी हो गई।

दुर्गा की एक बहन रेखा टीबी की मरीज थी, जिसका 2019 में निधन हो गया। उसकी पांच वर्ष की बेटी दुर्गा के पास है। दूसरी बहन राजकुमारी के दो बच्चे नेहा और रोहित की परवरिश में भी दुर्गा मदद करती है। दुर्गा की दैनिक दिनचर्या सभी को सीख देने वाली है। वह सुबह पांच बजे उठ जाती है और सुबह नौ बजे से पहले घर के सारे काम निपटाकर स्टेशन पहुंच जाती है, जहां रात नौ बजे तक काम करती है। बिना थके एक से दूसरे प्लेटफार्म तक दौड़ती-भागती है।

पूजा यादव

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