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HomeEDITORIAL News in Hindiनिस्वार्थ सेवा करना ही धर्म है

निस्वार्थ सेवा करना ही धर्म है

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हमारे यहां जो धारण किया जाए, उसी को धर्म कहा गया है। किसी गरीब व्यक्ति की मदद करना, पीड़ित जीवों की सेवा करना, संकट में फंसे व्यक्ति को उबारना, धर्म कहा गया है। यहां तक कि अपने बूढ़े मां-बाप की सेवा करना भी धर्म में ही आता है। हमारे यहां धर्म का मतलब मंदिर में जाकर पूजा-पाठ करना ही नहीं है। इस संदर्भ में एक रोचक कथा है। एक बार एक राजा को यह चिंता हुई कि वह अपने तीन बेटों में से किसकों राजा बनाए क्योंकि राजा बूढ़ा हो रहा था। उसे समय रहते अपना उत्तराधिकारी चुनना था।

एक दिन उसने काफी विचार-विमर्श के बाद तीनों बेटों को बुलाया और कहा कि वे किसी धर्मात्मा को खोज लाएं। तीनों लड़के पिता की आज्ञा मानकर बाहर चले गए। थोड़ी देर बाद एक पुत्र एक नामी गिरामी सेठ को लेकर आया और राजा से बोला, पिता जी यह हमारे राज्य के सेठ हैं और यह आए दिन दान-धर्म करते रहते हैं। यह लोगों की मदद करने को हमेशा तैयार रहते हैं। यह सुनकर राजा ने बहुत सारा धन देकर सेठ को विदा कर दिया। सेठ ने राजा से प्राप्त धन को लोगों की भलाई में खर्च करने का वचन भी दिया।

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दूसरा पुत्र एक ब्राह्मण को लेकर आया और उसने बताया कि पंडित जी ने चारों वेदों का अध्ययन कर रखा है। यह बहुत ही धर्मात्मा हैं। राजा ने उन्हें धन देकर विदा कर दिया। तीसरा पुत्र एक व्यक्ति को लेकर आया और बोला, यह आदमी एक कुत्ते के जख्म धो रहा था। मैंने इनसे पूछा कि इससे आपको क्या मिलेगा, तो इन्होंने कहा कि कुत्ते को आराम मिलेगा। राजा ने उस आदमी से पूछा कि क्या आप धर्म-कर्म करते हैं। उस आदमी जवाब दिया, जरूरत पड़ने पर मैं लोगों की मदद करता हूं। राजा ने कहा कि यही तो धर्म है। राजा ने तीसरे बेटे को राजा घोषित कर दिया।

Ashok Mishra

-अशोक मिश्र

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