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सेठ ने अपने बेटों को दी एकता की सीख
अशोक मिश्र

एकता में काफी बल होता है। जो समाज या परिवार इकट्ठा रहता है, उसको कोई दूसरा आंख नहीं दिखा सकता है। समाज में फूट पड़ने के कारण ही देश पराजित और गुलाम होता है। दुनिया भर के देश अगर गुलाम हुए या समाज बिखर गया, तो उनकी आपसी कटुता और संघर्ष के चलते। जो देश या समाज एकजुट रहे, वे कभी पराजित या गुलाम नहीं हुए। इस बात की शिक्षा देने के लिए हमारे देश में भी कई तरह की कहानियां गढ़ी गईं। कहा जाता है कि किसी सेठ के पांच बेटे थे। सेठ अपने प्रदेश में सबसे ज्यादा अमीर भी था। उस अथाह संपत्ति के वारिस उसके पांचों बेटे ही थे, लेकिन दिक्कत यह थी कि वे आपस में लड़ते रहते थे। पांच बेटे एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते थे। इसे देखकर सेठ काफी चिंतित रहता था। उसने कई बार अपने पुत्रों को समझाने की कोशिश की, लेकिन हर बार वह असफल हुआ। धीरे-धीरे वह बूढ़ा हो गया। उसे लगने लगा कि अब एकाध साल ही उसका जीवन बचा है, तो उसने बेटों को समझाने की आखिरी करने की सोची। उसने अपने पांचों पुत्रों को एक दिन अपने पास बुलाया और पांचों पुत्रों को एक-एक लकड़ी देते हुए तोड़ने को कहा। पांचों बेटों ने बड़ी आसानी से उन लकड़ियों को तोड़ दिया। फिर उसने सबको दो-दो लकड़ियां दीं, तो सभी बेटों ने थोड़ी मेहनत करके किसी न किसी तरह तोड़ी। लेकिन इस बार पहले जैसे सरल नहीं रहा। तब उसने पांचों बेटों के आगे एक-एक गट्ठर रखकर रस्सी खोले बिना तोड़ने को कहा। कोई भी उस गट्ठर को तोड़ नहीं पाया। तब सेठ ने अपने बेटों से कहा कि इसी तरह तुम पांचों भाई यदि मिलकर रहोगे, तो तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा। उसके बेटे अब समझ गए थे कि एकता में ही बल है।

अशोक मिश्र

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