शेख सादी का जन्म 1185 य 1186 में ईरान के शीराज शहर में हुआ था। उनके बारे में कहा जाता है कि वह भारत में सोमनाथ मंदिर को भी देखने आए थे। हालांकि पुरानी अरबी पुस्तकों में सीरिया, मिस्र, अरब, तुर्की और मध्य एशिया में यात्रा करने का जिक्र मिलता है। यह भी कहा जाता है कि इन यात्राओं के दौरान सीरिया में कुछ लोगों ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इनके एक मित्र ने दस दीनार (सोने के सिक्के) देकर इन्हें मुक्त कराया था। बाद में उसी मित्र ने सौ दीनार दहेज के रूप में देकर अपनी बेटी का विवाह भी इनसे कर दिया। इनकी बीवी काफी कड़वा बोलती थी और बात-बात में इनको दहेज को लेकर ताने मारती रहती थी। एक बार की बात है।
शेख सादी कहीं जा रहे थे। वे अपने ही ख्यालों में खोए हुए थे। अचानक उन्होंने देखा कि सड़क के किनारे बैठा एक भिखारी बहुत ही प्रसन्न होकर गुनगुना रहा है। यह देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि यह भिखारी गरीब और दिव्यांग होकर भी बहुत प्रसन्न है। वह एक कवि और विचारक होकर भी दिन भर परेशान रहते हैं। आखिर इस भिखारी के इतना प्रसन्न रहने का कारण क्या है? इसका पता लगाया जाए। यह सोचकर वह भिखारी के पास पहुंचे।
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उन्होंने उसकी प्रसन्नता का रहस्य जानना चाहा। उनका सवाल सुनकर भिखारी ठहाका लगाकर हंस पड़ा और बोला, मैं दिव्यांग होते हुए भी प्रकृति का आभार मानता हूं कि उसने मुझे दो हाथ दिए, एक पैर दिया, दो आंखें दी। मुझे सोचने-समझने के लिए दिमाग दिए। मैं अन्य लोगों की तरह देख-सुन तो सकता हूं। प्रकृति का यह उपकार कम तो नहीं है। मैं ज्यादा भीख मिलने की आकांक्षा भी नहीं रखता हूं। जितना मिल जाता है, उसी में संतोष कर लेता हूं। मेरी प्रसन्नता का कारण यही है। शेख सादी ने भिखारी की बात सुनकर जीवन का रहस्य जान लिया।
-अशोक मिश्र
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