संजय मग्गू
कल यानी 26 फरवरी को महाशिवरात्रि है। कहते हैं कि इसी दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन दुनिया में शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था। इसी दिन शिव ने तांडव करके प्रकृति के विनाश और पुनर्निर्माण का संदेश दिया था। कैसा परस्पर विरोधी चरित्र है शिव का। विनाश और पुनर्निर्णाण का संदेश एक ही साथ। अर्धनारीश्वर यानी पुरुष भी और स्त्री भी। यही वजह है कि शिव को समझ पाना आसान नहीं है। जिसने समझ लिया, प्रकृति के गूढ़ रहस्यों से परिचित हो गया। उसका सारा शोक अशोक में बदल गया। शिव परस्पर विरोधी शक्तियों में संतुलन के प्रतीक हैं। कहते हैं कि लय और प्रलय शिव के आधीन हैं। शिव का तात्पर्य ही सुंदर और कल्याणकारी, शिव का अर्थ ही सुंदर और कल्याणकारी, मंगल का मूल और अमंगल का उन्मूलन है। जीव यदि लय में रहे, तो सुखद रहेगा जीवन, यदि किसी ने लय बिगाड़ने की कोशिश की, तो प्रलय लाने के लिए तैयार बैठे रहते हैं शिव। प्रकृति के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाने का संदेश देने वाले शिव कर्मदंड देने में तनिक भी नहीं चूकते हैं। वैसे भी उनके दो रूप हैं सौम्य और रौद्र। प्रकृति और पुरुष में असंतुलन का नाम ही रुद्र है। जब तक शिव सौम्य रूप में रहते हैं, प्रकृति में लय बनी रहती है, जीवन निर्वाह होता रहता है। यदि शिव यानी रुद्र ने रौद्र रूप धारण किया, तो समझो महाप्रलय आने में तनिक भी संदेह नहीं है। इस चराचर संसृति के कल्याण के लिए वह हलाहल को भी बिना किसी संकोच को पी जाते हैं, हलाहल उनकी मर्जी के बिना कंठ से नीचे नहीं उतर पाता है। वह खुद परस्पर विरोधी तत्वों को अपने साथ लेकर चलते हैं। माथे पर चंद्रमा और लटाओं में गंगा, जो चराचर जगत में शीतलता प्रदान करती हैं। ठीक उसके नीचे विषधर सर्प जिसका एक बंूद विष किसी का भी जीवन हर लेने के लिए पर्याप्त है। खुद अर्धनारीश्वर हैं यानी पुरुष और प्रकृति (स्त्री) एक साथ। अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। रति पति कामदेव पर विजय प्राप्त करने वाले और क्रोध में काम को ही भस्म कर देने वाले शिव अपनी पत्नी उमा के यज्ञवेदी में कूदकर प्राणाहुति दे देने पर तांडव करने लगते हैं। यज्ञ को समूल नष्ट करा देते हैं। कामजित होते हुए भी पत्नी के प्रति इतनी आसक्ति? यह क्या सरल है किसी व्यक्ति के लिए। पार्वती के इशारे पर काम भावना पैदा करने गए कामदेव को भस्म करके पुन: ध्यानमग्न हो जाते हैं। दयालु इतने कि रति का विलाप सह नहीं पाए और अदेह रहकर प्राणियों में काम भावना पैदा करने की शक्ति देने के साथ श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में पैदा होने का आशीर्वाद भी दे देते हैं। उमा यानी पार्वती पति होते हुए भी वीतरागी हैं। कैलाश पर रहते हैं, लेकिन अन्य देवताओं की तरह रमणीय भवन का निर्माण तक नहीं किया। गृहस्थ होते हुए भी श्मशान में रहते हैं यानी काम और संयम का अद्भुत संतुलन। ऐसे शिव को समझ पाना शायद किसी के लिए भी आसान नहीं हो सकता है।
लय-प्रलय को आधीन करने वाले शिव को समझना आसान नहीं
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