लाल बहादुर शास्त्री का वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। उन्होंने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि पाई थी जिसे उन्होंने जातिसूचक शब्द की जगह पर उपयोग किया था। वह छोटे कद के बहुत ऊंचे राजनेता थे। उनकी महानता के किस्से आज भी सुने-सुनाए जाते हैं। कहा जाता है कि वे हमेशा सादगी से रहते थे।
गृहमंत्री, रेल मंत्री और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद वे देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे। जब वे रेल मंत्री थे, तब की एक घटना है। उन्होंने अपनी मां को बता रखा था कि वे रेलवे में नौकरी करते हैं। सीधी सादी उनकी मां ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया। एक दिन उन्हें पता चला कि उनका बेटा मुगलसराय में किसी कार्यक्रम में आने वाला है। वह उन्हें खोजती हुई वहां पहुंची और बताया कि उनका बेटा रेलवे में काम करता है।
उन्हें अपने बेटे से मिलना है। वहां मौजूद लोगों ने नाम पूछा, तो उन्होंने बताया, तो अधिकारियों ने कहा कि इस नाम का कोई भी आदमी वहां काम नहीं करता है। लेकिन शास्त्री जी की मां मानने को तैयार नहीं हुई। तभी एक रेलवे अधिकारी को लगा कि यह महिला कहीं रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी को अपना बेटा तो नहीं बता रही है। वह उसे वहां लेकर गया, जहां शास्त्री जी बैठे थे। मां ने शास्त्री जी को अपना बेटा बताया तो वह उन्हें लेकर शास्त्री जी के पास पहुंचा।
शास्त्री जी ने अपनी मां को अपने पास बिठा लिया। थोड़ी देर बाद उन्होंने मां को वापस घर भेज दिया। बाहर निकलने पर पत्रकारों ने इसका कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि मेरी मां बहुत सीधी हैं। लोग उनसे सिफारिश करने की बात कहते तो मैं उनको मना नहीं कर पाता। इसलिए मैंने उन्हें नहीं बताया कि मैं रेलमंत्री हूं। शास्त्री जी की इस सादगी को देश भर ने सराहा और उन्हें नमन किया।
-अशोक मिश्र