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नजर गड़ाए रहिए, देखें आगे क्या होने वाला है

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मन एक नदी के समान है। जिस तरह नदी के पानी का प्रवाह कभी एक-सा नहीं रहता, कभी स्थिर नहीं रहता। इसी तरह की स्थिति मन की भी होती है। मन कभी स्थिर नहीं रहता। परिस्थितियों और परिवेश का असर मन के प्रवाह पर पड़ता रहता है। भारत जैसे महान देश में अभी जो कुछ हो रहा है, वह भी उसी प्रवाह का परिणाम है। सत्ता के लिए देश में अब ऐसा होने लगा है कि हमारा पतन ही होता जा रहा है और पता नहीं अभी नीचे और कितना पतन बाकी है। मेहनत की कमाई को मुफ्त में खाने का तरीका है जातिवाद, राजवाद, ब्रह्मवाद, यज्ञवाद। समाज में जनता को इस ‘वाद’ के जाल से तब तक नहीं बचाया जा सकता, जब तक वह खुद सचेत न हो और उन्हें सचेत होने देना स्वार्थियों को पसंद नहीं होता।

‘भारत जोड़ो यात्रा’ को पिछले सप्ताह एक वर्ष पूरा हो गया। इस एक वर्ष में कांग्रेस ने क्या पाया और क्या खोया, यदि इसका विश्लेषण किया जाए तो जिस कांग्रेसमुक्त भारत की कल्पना भाजपा के नेताओं ने की थी। इस एक वर्ष में ही उसके अरमान धूल धुसरित हो गए। जब राहुल गांधी ने पिछले वर्ष ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू की थी, तो उसे सत्तारूढ़ ने इसे बहुत हल्के में लिया था और छोटी-छोटी बातों को लेकर जमकर तंज कसा जाता था।

कभी टी—शर्ट, तो कभी किसी से मिलने पर स्वामी विवेकानंद के दर्शन न करने को लेकर, कभी तानाशाह सद्दाम हुसैन से तुलना की गई और न जाने क्या—क्या, लेकिन बेपरवाह होकर राहुल गांधी ने अपनी यात्रा सफल बनाने में कामयाब रहे। परिणाम आलोचक के मुंह पर करारा तमाचा था- सत्तारूढ़ भाजपा को हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस ने सत्ता से बेदखल कर दिया।

अब अपने देश में एक नया विवाद खड़ा हो गया है, वह है इंडिया बनाम भारत। इस बात को सब जानते हैं कि इंडिया और भारत एक ही देश का नाम है, लेकिन अब इस पर भी बवाल खड़ा हो गया है। यह बात समझ में नहीं आती कि आखिर इस तरह का फितूर राजनीतिज्ञों के मन में आता कैसे हैं? प्रचलन में दोनों नामों की चर्चा होती रही है और खासकर केंद्रीय सरकारी कार्यालय के कामकाज में इंडिया नाम का ही प्रयोग किया जाता है, लेकिन जहां अपने पर, अपने देश पर गर्व करने का मुद्दा आता है, वहां भारत नाम का प्रयोग हम करते हैं। दोनों एक ही नाम हैं, जैसे सोना कहें या गोल्ड, बात एक ही है।

सरकारी और खासकर केंद्रीय सरकार के मामले में उसके पत्रजात पर अंग्रेजी का ही प्रयोग किया जाता है जैसे- गवर्नमेंट आफ इंडिया ही लिखा जाता हैं, न कि गवर्नमेंट आफ भारत। अभी जी-20 शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ, तो जितने भी विदेशी मेहमान आए थे, सभी गवर्नमेंट आफ इंडिया के निमंत्रण पर यहां आए थे, लेकिन जब उन्हें रात्रि भोज के लिए प्रेसिडेंट आफ भारत का निमंत्रण मिला होगा, तो निश्चित रूप से वे कुछ पल के लिए भ्रमित हो गए होंगे कि अतिथि तो वे गवर्नमेंट आफ इंडिया के थे, लेकिन रात्रि भोज का निमंत्रण प्रेसिडेंट आॅफ भारत से आया है, आखिर यह मामला क्या है!

याद कीजिए वर्ष 2013 जब कांग्रेस के प्रति कितना दुष्प्रचार किया जा रहा था और भाजपा के लिए कितना प्रचार किया जा रहा था, गुजरात मॉडल की कितनी विशेषताएं बताई जा रही थीं। लोग मंत्रमुग्ध थे, आशाओं की एक तरह से बाढ़ आ गई थी। कितने खुश थे उस पर यह दिवास्वप्न कि देश के हर व्यक्ति के खाते में कम से कम पंद्रह लाख रुपये आएंगे, हर साल दो करोड़ बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। देश का हर व्यक्ति सुखी जीवन का स्वप्न देखने लगा था। एक बार नहीं, दो-दो बार जनता को इस तरह मंत्रमुग्ध कर दिया गया कि सब यह सोचने पर विवश हो गए कि ‘अच्छे दिन’ आने ही वाले हैं, लेकिन जब आंख खुली, तो सारे स्वप्न टूट चुके थे।

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