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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हमेशा निराला रहे

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अशोक मिश्र
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फरवरी 1899 को पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल गांव में हुआ था। इनका पिता राम सहाय तिवारी महिषादल में सिपाही थे। तब मेदिनीपुर महिषादल रियासत में थी। इनके पिता उन्नाव के बैसवाड़ा क्षेत्र के गढ़ाकोला गांव के रहने वाले थे। इनके पिता ने अपने बेटे का नाम सूर्जकुमार तिवारी रखा था। बाद में उन्हें अपना नाम पसंद नहीं आया, तो पहले सूर्य कुमार तिवारी किया और बाद में कुमार हटाकर कांत जोड़कर अपना नाम कर लिया सूर्यकांत तिवारी। जब बड़े होने पर कविता के क्षेत्र में अपनी जगह बनाई तो नय नामकरण हुआ, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला। कहा जाता है कि बचपन में जब वह आठवीं की परीक्षा दे रहे थे, तो गणित उनके पल्ले नहीं पड़ती थी। आठवीं में ही वह पद्मावत का अध्ययन करने लगे थे। वे अपने पिता से कैसे कहते कि उन्हें गणित में कोई रुचि नहीं है। उनको भारतीय दर्शन और काव्य रुचिकर लगते हैं। ऐसी स्थिति में उन्होंने घर छोड़ने की योजना बनाई और एक दिन अपने पिता से कहा कि इस बार वह सूबे में आठवीं की परीक्षा में टॉप करने वाले हैं। साथ में यह भी बताया कि एक जमींदार के यहां शादी का निमंत्रण आया है। पिता ने नए कपड़े सिलवा दिए, तो पहुंच गए अपनी ससुराल। उन दिनों बंगाल में ही नहीं, पूरे उत्तर भारत में बाल विवाह का चलन था। सो, निराला का भी विवाह उन दिनों हो गया था। अपनी ससुराल में पिता की किसी से लड़ाई और जमानत कराने के नाम पर डेढ़ सौ रुपये वसूले और वहां से रफूचक्कर हो गए। पहुंच गए कलकता। इसके बाद साहित्य के उच्च मुकाम तक पहुंचने में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को काफी संघर्ष करना पड़ा। लेकिन उन्होंने जीवन में लाख परेशानियां रही हों, अपने सिद्धांत से कभी समझौता नहीं किया। वह हमेशा अपने स्वाभिमान को महत्व देते रहे। हिंदी साहित्य में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला अमर हो गए।

अशोक मिश्र

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