बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
स्वामी विवेकानंद का संन्यास लेने से पहले नाम था नरेंद्र नाथ। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को बंगाल के एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। बचपन से ही नरेंद्र नाथ का झुकाव आध्यात्मिकता की ओर था। उनके गुरु रामकृष्णदेव परमहंस थे। उनके गुरु ने स्वामी विवेकानंद को बताया था कि सभी जीवों में परमात्मा का वास होता है। जब रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई, तो उन्होंने कई देशों की यात्रा की। सन 1893 में अमेरिका के शिकागों में आयोजित होने वाले धर्म संसद में उन्होंने जिस तरह भारत का नाम रोशन किया, वह जगत विख्यात है। उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से अमेरिकावासियों को अपना प्रशंसक बना लिया था। अमेरिका प्रवास के दौरान वह एक के पुल पर टहल रहे थे। उन्होंने देखा कि कुछ अमेरिकी लड़के नदी में तैर रहे अंडे के छिलके पर बंदूक से निशाना लगा रहे हैं। बच्चे ठीक से निशाना नहीं लगा पा रहे थे। स्वामी विवेकानंद उन्हें बड़े गौर से देखते रहे। कुछ देर बाद स्वामी विवेकानंद ने उन बच्चों से बंदूक ले ली और अंडे के छिलके पर निशाना साधा। निशाना बिल्कुल ठीक लगा। इसके बाद उन्होंने बारह बार निशाना साधा और सभी निशाने बिल्कुल ठीक लगे। यह देखकर अमेरिकी लड़कों ने स्वामी विवेकानंद से पूछा कि आपने यह कैसे कर लिया? क्या आपने निशानेबाजी का प्रशिक्षण लिया है? स्वामी विवेकानंद ने कहा कि जो भी काम करो, अपना पूरा ध्यान उस काम लगाओ। यदि निशाना लगा रहे हो, अपना पूरा ध्यान लक्ष्य पर लगाओ। इसी तरह यदि पढ़ाई कर रहे हो, मन लगाकर पढ़ाई करो। हमारे देश में बच्चों को ऐसा करना ही सिखाया जाता है। यह सुनकर अमेरिकी बच्चे काफी प्रभावित हुए। उन्होंने स्वामी विवेकानंद से काफी देर तक बातें की।
स्वामी विवेकानंद बोले, लक्ष्य पर ध्यान दो
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