क्रोध एक ऐसी आग है जो सब कुछ जलाकर राख कर देती है। क्रोध में आदमी कई बार अपने को ही नुकसान पहुंचा देता है। क्रोध से बचकर रहने की सलाह तो हमारे धर्मग्रंथों में दी गई है। इसके बावजूद लोग क्रोध करना नहीं छोड़ रहे हैं। एक बार की बात है। महात्मा बुद्ध किसी गांव में लोगों को क्रोध विषय पर उपदेश दे रहे थे। उनका कहना था कि व्यक्ति को धरती की तरह क्षमाशील और सहनशील होना चाहिए। सभा में सभी गांव वाले शांति से बुद्ध का उपदेश सुन रहे थे। लोगों के बीच एक ऐसा आदमी भी बैठा था जिसको बहुत क्रोध आता था।
उसे महात्मा बुद्ध की बातें बहुत अजीब लग रही थी। उपदेश सुनते-सुनते उसमें क्रोध पैदा हुआ और वह बुद्ध को अपशब्द कहने लगा। उसने कहा कि तुम पाखंडी हो, धूर्त हो, तुम अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से लोगों को भ्रमित कर रहे हो। तुमने आज जो क्रोध न करने की बातें कही हैं, उनका कोई मतलब नहीं ंहै। उस व्यक्ति के अपशब्द सुनकर भी महात्मा बुद्ध शांत रहे। इससे उस व्यक्ति का क्रोध और बढ़ गया।
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वह उठकर बुद्ध के पास गया और उनके मुंह पर थूक दिया। वह गुस्से से तमतमाता हुआ वहां से चला गया। अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ तो उसने अपनी करनी पर बहुत पछतावा हुआ। उस व्यक्ति ने अपने आसपास के लोगों से बुद्ध के बारे में पता किया और वह उस जगह पहुंचा जहां बुद्ध प्रवचन दे रहे थे। उसने बुद्ध से कहा कि मुझे क्षमा कीजिए प्रभु। बुद्ध ने उस व्यक्ति से पूछा कि तुम मुझसे क्षमा क्यों मांग रहे हो? उसने कहा कि मैं वहीं हूं जिसने कल आपके मुंह पर थूक दिया था। मैं उसके लिए शर्मिंदा हूं और क्षमा मांगने आया हूं। बुद्ध ने कहा, बीता हुआ कल मैं वहीं छोड़ आया और तुम अभी वहीं अटके हुए हो।
-अशोक मिश्र
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