संजय मग्गू
हरियाणा में लगातार तीसरी बार सरकार बनने के बाद भाजपा के सामने चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। दूसरी बार सीएम बनने का अवसर पाने वाले नायब सिंह सैनी ने पहले ही दिन अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण में उपवर्गीकरण का फैसला लेकर यह संदेश जरूर दिया है कि वह अपने चुनावी वायदे को जरूर पूरा करेंगे। प्रदेश में 24 हजार भर्तियों के रिजल्ट जारी करके उन्होंने अपने दूसरे वायदे को भी निभा दिया है। इसके बावजूद चुनौतियां भी कम नहीं हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो प्रत्येक घर की महिलाओं को 21 सौ रुपये महीना देने और पांच सौ रुपये में गैस सिलेंडर उपलब्ध कराने के मामले में है। क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से हरियाणा देश के छोटे राज्यों में गिना जाता है। ऐसी स्थिति में हर महीने महिलाओं को 21 सौ रुपये और पांच सौ रुपये में गैस सिलेंडर उपलब्ध कराने के मद में खर्च होने वाली रकम कहां से आएगी,यह सबसे बड़ी समस्या है। इसके लिए संभव है कि सरकार को कुछ मामलों में टैक्स की दर बढ़ाने पड़े या पुरानी कुछ योजनाओं को बंद करके उसमें खर्च होने वाली रकम का इस मद में उपयोग किया जाए। यह भी हो सकता है कि राज्य सरकार इस मद में खर्च होने वाली रकम कर्ज के रूप में हासिल करे। हरियाणा जैसे छोटे प्रदेश के स्वास्थ्य के लिए और अधिक कर्ज लेना अच्छा नहीं माना जा सकता है। सन 2014 में जब कांग्रेस ने भाजपा को प्रदेश की सत्ता सौंपी थी, उस सयम प्रदेश पर करीब सत्तर हजार करोड़ रुपये का कर्ज था। पिछले दस सालों में यह कर्ज बढ़कर अब लगभग तीन लाख सत्तर हजार करोड़ रुपये हो चुका है। ऐसे में और कर्ज लेना, उचित निर्णय तो नहीं हो सकता है। लड़कियों को स्कूटी देने का वायदा भी सरकार को पूरा करना है। प्रदेश के युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना भी एक बड़ी समस्या है। यह सही है कि 24 हजार भर्तियों के रिजल्ट घोषित होने से युवाओं की अपेक्षा पूरी हो गई है। विधानसभा चुनाव के दौरान सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी ही था। वैसे भी हरियाणा में बेरोजगारी की दर नौ फीसदी से अधिक है जो राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है। प्रदेश सरकार को अग्निवीरों के लिए किए गए वायदे को भी पूरा करना होगा क्योंकि चुनाव के दौरान भाजपा के केंद्रीय और प्रदेश स्तरीय नेताओं ने अग्निवीरों को पेंशन वाली नौकरी देने का वायदा किया है। पिछले कई सालों से कामन एलिजिबिटी टेस्ट(सीईटी) नियमित नहीं हो पाए हैं। सैनी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि सीईटी हर साल हो और इसमें पास होने वाले युवाओं को हर साल नौकरी मिले। यदि प्रदेश सरकार जाट और गैर जाट का भेदभाव किए बिना युवाओं को संतुष्ट करने में सफल हो गई, तो पांच साल में उसकी अच्छी छवि बनने से कोई नहीं रोक सकता है।
संजय मग्गू