लालच और ईर्ष्या किसी भी व्यक्ति को अंधा बना देता है। वह करणीय और अकरणीय भूल जाता है। एक राजा का दूसरे राजा पर हमला करके उसके राज्य को हड़प लेने की घटनाएं दुनिया के लगभग सभी देशों में होती रही हैं। एक बार की बात है। कौशल राज्य में एक राजा हुआ था जो काफी दानवीर था। वह अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखता था। प्रजा की भलाई के लिए वह हरदम तैयार रहता था। यही वजह थी कि उसकी ख्याति बहुत दूर दूर तक फैली हुई थी।
लोग कौशल राज्य के राजा और वहां की खुशहाली की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। यह बात काशी के राजा को बहुत नापसंद थी। वह पहले से भी काफी अमीर था, लेकिन ईर्ष्यावश उसने कौशल राज्य पर हमला कर दिया। युद्ध में कौशल देश का राजा पराजित हो गया। लेकिन वह अपनी जान बचाकर जंगलों में भाग गया। अब लोग यह कहने लगे कि इतने अच्छे राजा की पराजय हो गई। लक्ष्मी ने भी कौशल के राजा की मदद नहीं की।
ऐसा लगता है जैसे राहु ने चंद्रमा को निगल लिया हो। यह सुनकर काशी के राजा को अपने दुश्मन कौशल के राजा के प्रति और घृणा पैदा हो गई। उसने घोषणा की कि जो भी कौशल के पूर्व राजा को जिंदा या मुर्दा पकड़कर लाएगा, उसे एक हजार स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी। उधर कौशल का पूर्व राजा जंगल में कंद मूल फल खाकर गुजारा कर रहा था। एक दिन एक व्यापारी उधर से गुजरा और उसने कौशल जाने का रास्ता पूछा।
राजा ने कहा कि उस अभागे राज्य में क्यों जाना चाहते हो, तो उसने बताया कि उसे बहुत घाटा हुआ है। वह जा रहा है कि शायद कुछ मदद मिल जाए। तब उसे लेकर राजा दरबार में पहुंचा और कहां कि मैं कौशल का राजा हूं। मुझे पकड़वाने के बदले की राशि इस व्यापारी को दे दी जाए। यह देशकर काशी के राजा का हृदय परिवर्तन हो गया। उसने जीता हुआ राज्य लौटा दिया और काशी लौट गया।
-अशोक मिश्र