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HomeEDITORIAL News in Hindiराजा को होना चाहिए समदर्शी

राजा को होना चाहिए समदर्शी

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यह कोई जरूरी नहीं है कि अपने परिवार का व्यक्ति ही हितैषी और योग्य हो। दूसरे गांव, प्रदेश या देश का व्यक्ति भी लाभकारी होता है। जो व्यक्ति अपने-पराये का भेद मिटाकर सबके साथ समान रूप से व्यवहार करते हैं, वही साधु कहलाते हैं, समदर्शी कहलाते हैं। एक राज्य के राजा का निधन होने पर उसका युवा पुत्र राजा बना।

कुछ दिन शासन करने के बाद उसे लगा कि उसे एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उसको शासन संबंधी उचित सलाह दे और लोगों को सहायता और न्याय उचित समय पर मिल सके। इस संबंध में उसने अपने इर्द-गिर्द लोगों पर निगाह रखना शुरू किया। कई लोगों को उसने जांचा-परखा, लेकिन कोई उसको अपने सलाहकार के योग्य नहीं लगा। उसके राज्य में एक बुजुर्ग संत रहते थे। वह अक्सर यात्रा पर ही रहते थे और दीन-दुखियों की सेवा, सहायता करते रहते थे।

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वे खुद बुजुर्ग थे लेकिन उन्हें परोपकार करने में आनंद आता था। एक बार वे राज भवन पहुंचे, तो युवा राजा ने उनका आदर सत्कार किया। शाम को जब दोनों लोग बैठे विभिन्न विषयों पर चर्चा कर रहे थे, तो राजा ने संकोच करते हुए कहा कि गुरुवर! मेरे मन में एक संशय है। मैंने अपने सलाहकार के लिए दो आदमियों को योग्य पाया है, लेकिन किसको चुनूं, यह समझ नहीं पा रहा हूं। संत ने कहा कि दोनों के बारे में बताइए। राजा ने कहा कि एक युवक है, लेकिन वह पढ़ाई-लिखाई के साथ अन्य मामलों में भी योग्य है। लेकिन दूसरा राजपरिवार से है, लेकिन कम योग्य है। संत ने कहा कि जब हमारे शरीर में कोई रोग होता है, वह शरीर में होता है, लेकिन उस रोग की औषधियां बाहर की ही होती हैं। राजा संत के संकेत को समझ गया। उसने अगले दिन दूसरे राज्य के युवक को सलाहकार नियुक्त कर दिया।

अशोक मिश्र

-अशोक मिश्र

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