संजय मग्गू
इन दिनों नीतीश कुमार चर्चा में है। चर्चा की वजह उनकी चुप्पी है। यह चुप्पी सियासी तौर पर है। इस चुप्पी के पीछे बिहार के दो सबसे अनुभवी नेता हैं। एक तो खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं और दूसरे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हैं। दरअसल, इन दोनों नेताओं के प्रेरणास्रोत एक ही हैं जय प्रकाश नारायण। दरअसल, सन 1974-77 में जेपी आंदोलन अपने चरम पर था, तो बिहार में चार छात्र नेताओं का उदय हो रहा था। उनमें नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और सुशील कुमार मोदी शामिल थे। इन चारों का सियासी अखाड़ा एक ही था। इन चारों का सियासी उभार एक ही साथ हुआ था। जयप्रकाश नारायण के इंदिरा गांधी के खिलाफ किए गए आंदोलन ने इन चारों छात्र नेताओं को काफी प्रभावित किया। इनमें दलितों के नेता रामविलास पासवान को भी शामिल किया जा सकता है, लेकिन वह जेपी आंदोलन में शामिल नहीं हुए थे। हां, आपातकाल के विरोध में जेल जरूर गए थे और लालू, शरद, नीतीश और सुशील कुमार मोदी से राजनीति में वरिष्ठ थे। अफसोस है कि जेपी आंदोलन के दौर में उभरने वाले इन पांच नेतओं में से तीन की मौत हो चुकी है। अब जेपी आंदोलन से प्रभावित होकर सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाले सिर्फ दो ही नेता बचे हैं-नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव। इन दोनों ने अपने राजनीतिक जीवन में कई बार साथ काम किया, कई बार अलग हुए। लेकिन इन दोनों के बीच एक महीन रिश्ता हमेशा कायम रहा। व्यक्तिगत तौर पर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार अलग-अलग रहने के बावजूद जेपी आंदोलन के दौरान विकसित हुए दोस्ती की पतली सी डोरे से बंधे रहे। यही वजह है कि जब पिछले दिनों लालू प्रसाद यादव ने कहा कि नीतीश कुमार के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे, तो नीतीश कुमार सिर्फ मुस्कुराए थे। कुछ बोले नहीं। असल में नीतीश और लालू बहुत चतुर राजनीतिज्ञ हैं। दरअसल, लालू के निमंत्रण को नीतीश कुमार भाजपा पर दबाव बनाकर विधानसभा चुनावों के दौरान ज्यादा से ज्यादा सीटें हथियाने की फिराक में हैं, ऐसी बिहार के राजनीतिक गलियारे में चर्चा है। जहां तक पाला बदलने की बात है, तो बिहार भाजपा के नेता अक्सर कहते रहते हैं कि अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी जब बिहार में भाजपा का मुख्यमंत्री होगा। कुछ समय पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक चैनल से बात करते हुए बिहार चुनावों में सीएम फेस के बारे में पूछे जाने पर कहा था कि इस तरह के फैसले लेना संसदीय बोर्ड का काम है। बस, इसी के बाद नीतीश कुमार ने चुप्पी साध ली है। दो-तीन दिन पहले राज्यपाल के शपथ ग्रहण समारोह में तेजस्वी के कंधे पर हाथ रखकर नीतीश कुमार ने मानो एक संदेश दिया है कि हालात बदले तो हम साथ आ सकते हैं। राजनीति में जब कुछ भी अकारण नहीं होता है, तो नीतीश का तेजस्वी के कंधे पर हाथ रखना अकारण कैसे हो सकता है।
अकारण नहीं है नीतीश कुमार की चुप्पी
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