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गरीब बढ़ रहे हैं, मतलब कहीं अमीर भी बढ़ रहे हैं

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सामंती समाज में सबसे शक्तिशाली सामंत यानी राजा हुआ करता था। जैसे-जैसे सामंती समाज के विकास का रास्ता बंद हुआ, तो उसी सामंती समाज के गर्भ से एक नई व्यवस्था का जन्म हुआ जिसे पूंजीवादी व्यवस्था कहा गया। धीरे-धीरे इसने सामंतवाद को खत्म करके वैश्विक रूप अख्तियार किया। जैसे-जैसे औद्योगिक क्रांति होती गई पूंजीवादी व्यवस्था शक्तिशाली होती गई। इसने सदियों से चले आ रहे बाजार का स्वरूप ही बदल दिया। इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तकनीक ने। हालांकि तकनीक भी पूंजीवादी व्यवस्था का ही एक अभिन्न अंग था, है और रहेगा।

तकनीक और पूंजी के तालमेल ने बाजार की प्राचीन अवधारणा को पूरी तरह बदल दिया। नतीजा यह हुआ कि अपनी पूंजी की सत्ता की बदौलत एक वर्ग अमीर से अमीरतम होता जा रहा है और बाकी लोग गरीब से गरीबतम होते जा रहे हैं। हाल में ही आई आक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया में पांच अरब लोग गरीब हुए हैं। दुनिया भर की सरकारें आंकड़ा जारी करती हैं कि हमारे देश में इतने लाख या करोड़ लोग गरीबी की सीमारेखा से ऊपर उठे हैं यानी अब वे गरीब नहीं रहे। हमारे देश में भी सरकार ने कुछ महीने पहले आंकड़ा जारी किया था कि इतने करोड़ लोग अब गरीब नहीं रहे। लेकिन सवाल यह है कि जो पांच सौ करोड़ लोग गरीब हुए हैं, उनमें क्या हमारे देश के गरीब शामिल नहीं हैं। यही सवाल दुनिया के किसी भी देश का नागरिक अपनी सरकार से पूछ सकता है।

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जब कहीं पर गरीबी बढ़ती है, तो इसका मतलब यही है कि कहीं अमीरी बढ़ी है। क्या यह ताज्जुब की बात नहीं है कि पूरी दुनिया में चंद मुट्ठी भर लोग सम्पन्नता की दौड़ में सबसे आगे हैं और अरबों लोग कहीं बहुत पीछे छूट गए हैं। दुनिया भर की सकल संपदा का स्वामित्व पूरी आबादी के दो से तीन प्रतिशत लोगों के पास है और 97-98 प्रतिशत लोग अच्छी शिक्षा, अच्छी नौकरी, अच्छा परिवेश, अच्छी स्वास्थ्य सुविधा सहित अन्य मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं। स्टाक एक्सचेंज मार्केट की आभासी दुनिया में अरबों-खरबों का कारोबार हर पल हो रहा है। बाजार नित नया रूप धारण करके हमारे दिलोदिमाग को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। बाजार को अपने ग्राहक पर भरोसा लगातार बढ़ता जा रहा है।

पहले बनिये की दुकान से खरीदा गया माल खराब निकलने पर वापस नहीं लिया जाता था। लेकिन अब आनलाइन कंपनियां न केवल खराब उत्पाद को बदल रही हैं, बल्कि पसंद न आने पर वे वापस भी ले रही हैं। इसमें नित नई तकनीक की भी बहुत बड़ी भूमिका है। नई-नई तकनीक जहां मानवश्रम की उपयोगिता कम से कमतर करती जा रही हैं, वहीं पूंजीपतियों के मुनाफे में लगातार इजाफा करती जा रही हैं। कोरोना वायरस हो या युद्ध, इसका प्रभाव जनता पर तो पड़ रहा है, लेकिन पूंजी पर इसका कोई असर नहीं है। पूंजी हर परिस्थिति में प्रभावशाली है।

संजय मग्गू

-संजय मग्गू

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