अगर कोई बर्तन खाली है, तो उसमें उसके आयतन के बराबर कोई तरल या ठोस वस्तु भरी जा सकती है। अगर कोई बर्तन पहले से ही भरा है, तो फिर उसमें कुछ भी भरना असंभव है, जब तक बर्तन खाली न किया जाए। ठीक ऐसा ही ज्ञान है। अगर कोई व्यक्ति पहले से ही सब कुछ जानता है, तो उसे क्या नया बताया जा सकता है। एक बार की बात है। रूस में एक संत रहते थे। बड़े दयालु, बड़े परोपकारी। जो भी उनसे मदद मांगने आता, वे भरपूर मदद करते थे। एक दिन एक विचारक उनके पास आए। उन्होंने संत से कहा कि वैसे तो मैंने ढेर सारी पुस्तकों का अध्ययन किया है।
मैंने बहुत सारा ज्ञान अर्जित किया है, लेकिन इसके बावजूद मैं आपसे कुछ सीखना चाहता हूं। मुझे नित नया ज्ञान हासिल करना बहुत अच्छा लगता है। विचारक की बात सुनकर संत को आभास हो गया कि इन्हें अपने ज्ञान का अभिमान हो गया है। यह अभिमान किसी विद्वान के लिए अच्छा नहीं होता है। उन्होंने विचारक को सबक सिखाने की सोची। एक सफेद कागज विचारक को देकर बोले, आप इस कागज पर यह लिख दें कि आपको क्या आता है और क्या नहीं आया है। इससे मैं आपको जो नहीं आता है, यह सिखा सकूंगा। यह सुनकर विचारक सन्न रह गए।
यह भी पढ़ें : प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने को शुरू हुआ मिशन-60 हजार
उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस कागज पर क्या लिखे। जो कुछ भी आता था, वह भी उस क्षण उनको भूल गया। थक हारकर उन्होंने कोरा कागज संत को वापस करते हुए कहा कि उन्होंने कहा कि मुझे कुछ नहीं आता है। संत ने मुस्कुराते हुए कहा कि अब आप सीखने लायक हो गए हैं। अब आपको सिखाया जा सकता है। जिसको यह अभिमान हो कि मुझे सब आता है, उसे ज्ञान दे पाना, असंभव है। वह कुछ नहीं सीख सकता है।
-अशोक मिश्र
लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/