इन दिनों देश में यूसीसी अर्थात यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस जारी है। यह बहस ऐसे समय में छिड़ी है जबकि लगभग नौ महीने बाद देश में आम लोकसभा चुनाव की घोषणा की जानी है। यूसीसी भाजपा के उन्हीं तीन प्रमुख चुनावी वादों में से एक है जिन्हें भाजपा ने एक दूरगामी रणनीति के तहत अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में 1996 में पहली बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनते समय ठंडे बस्ते में डाल दिया था। न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर एक गैर कांग्रेसी राजग सरकार का गठन किया था। परन्तु 2019 के लोकसभा चुनावों में जैसे ही भाजपा अपने पूर्ण बहुमत पर पहुंची और 303 सीटों पर जीत हासिल की। वैसे ही भाजपा अपने उन मूल मुद्दों को पूरा करने में जुट गयी। इनमें पहला अयोध्या मंदिर निर्माण मुद्दा तो अदालती फैसले के आधार पर निर्णायक नतीजे पर पहुँच गया, जबकि 5 अगस्त 2019 को कश्मीर से धारा 370 हटाकर भाजपा ने अपना दूसरा मूल मुद्दा भी हल कर लिया।
अब विभिन्न राज्यों व केंद्र के चुनाव निकट भविष्य में होने वाले हैं, भाजपा ने अपने तीसरे यानी समान नागरिक संहिता के मुद्दे को हवा देनी शुरू कर दी है। वैसे भी समान नागरिक संहिता केंद्र की मौजूदा सत्ताधारी भाजपा के लिए जनसंघ के समय से ही प्राथमिकता वाला एजेंडा रहा है। भाजपा सत्ता में आने पर यूसीसी को लागू करने का वादा करने वाली पहली पार्टी थी। यह मुद्दा उसके 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणा पत्र का प्रमुख हिस्सा भी था।
अब यहां पहला प्रश्न यह है कि जिस समान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड की बात भाजपा दशकों से करती आ रही है, उसमें और जिस समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) की चर्चा इन दिनों छिड़ी है, इनमें अंतर क्या है? मोटे तौर पर समान नागरिक संहिता का आशय पूरे देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून लागू करना है। समान नागरिक संहिता का अर्थ होता है भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान कानून होना। चाहे वह किसी भी धर्म, वर्ग, समुदाय या जाति का क्यों न हो।
समान नागरिक संहिता लागू होने से सभी धर्मों का एक कानून होगा। शादी, तलाक, गोद लेने और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। इसकी वास्तविक व विस्तृत परिभाषा क्या होगी, यह तभी पता चल सकेगा जब इसका पूरा ड्राफ़्ट सामने आएगा। इसके बावजूद इसका ड्राफ़्ट अभी तक तैयार होने की कोई सूचना नहीं है। फिर भी उम्मीद है कि इसमें वर्ग के अनुसार एक वर्ग एक समुदाय या एक सम्प्रदाय के लिए अलग अलग कानून होने की संभावना है। इसलिए यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर छिड़ी इस बहस में शोर और विवाद तो बहुत हैं परन्तु सीसीसी या यूसीसी के अंतर को लेकर अभी अनेक भ्रांतियां भी बनी हुई हैं।
राष्ट्रीय विधि आयोग ने देश की संस्थाओं व आम नागरिकों से गत 14 जून को इस विषय पर सुझाव मांगे थे। पिछले दिनों आयोग की ओर से मांगे गए सुझाव की समय-सीमा बढ़ा दी गई है। अब 28 जुलाई तक समान नागरिक संहिता को लेकर भारतीय नागरिक अपने सुझाव आयोग की वेबसाइट पर दे सकेंगे। विधि आयोग की विज्ञप्ति के अनुसार समान नागरिक संहिता विषय पर जनता की जबरदस्त प्रतिक्रिया प्राप्त होने के बाद इस तिथि को बढ़ा दिया गया है। इसके लिए समय बढ़ाने को लेकर भी विभिन्न क्षेत्रों से अनुरोध मिल रहे थे। ऐसे में आयोग ने संबंधित हितधारकों से विचार और सुझाव प्राप्त करने के लिए समय सीमा को दो सप्ताह और बढ़ाने का निर्णय लिया है। इस तरह के अनेकानेक रूढ़ियां व परम्परायें अनेकता में एकता रखने वाले इस भारत महान देश में विभिन्न धर्मों, समुदायों व जातियों में अनेक क्षेत्रों में देखी जा सकती हैं। ऐसे में यूसीसी की चर्चा महज एक समुदाय विशेष को विद्वेलित करने का प्रयास है या इसके पीछे सरकार की मंशा कुछ और है। इस बात का सही अंदाजा तभी लग सकेगा जब इसका ड्राफ़्ट सार्वजनिक होगा। संभव है कि इसी मुद्दे के बहाने राजनीति के धुरंधर खिलाड़ियों की निगाहें कहीं हों और निशाना कहीं और?
तनवीर जाफरी