जब कोई व्यक्ति संकट में हो और उसकी मदद करने से उसका कोई अपना मदद करने में असमर्थता जताए, तो लगता है कि उस आदमी ने संकट के समय मदद नहीं की। भले ही वह व्यक्ति जिससे मदद मांगी गई हो, वह खुद संकट में हों। हां, अगर कोई व्यक्ति संकटग्रस्त व्यक्ति की तनिक भी मदद कर दे, तो लगता है कि उसने भारी मदद की। शायद इसी को कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा। एक बार की बात है। किसी नगर में जौहरी था।
उसकी दुकान भी ठीक ठाक चलती थी, लेकिन एक दिन उसकी अचानक मौत हो गई। परिवार पर संकट छा गया। कुछ दिनों तक बचत के पैसे से काम चला, लेकिन एक दिन उस व्यापारी की पत्नी ने एक हार अपने बेटे को देकर कहा कि इसे लेकर चाचा की दुकान पर चले जाओ और बेच दो। उसका चाचा भी जौहरी था। हार लेकर लड़का अपने चाचा की दुकान पर पहुंचा, तो उसने हार हाथ में लेने के बाद कहा कि बेटे, ऐसा करो, भाभी से जाकर कहना कि अभी बाजार मंदा चल रहा है, इसको अभी न बेचे। जब बाजार चढ़ेगा, तब इसे लाकर देना मैं बेच दूंगा।
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और हां, कल से तुम दुकान पर आकर काम करो। इसके साथ ही उसके चाचा ने कुछ रुपये भी दिए। दूसरे दिन से लड़का अपने चाचा की दुकान पर काम करने लगा। कुछ साल बाद वह अच्छा जौहरी बन गया। बहुत दूर दूर से लोग अपने हीरे-जवाहरात की परख के लिए उसके पास आने लगे। उसने पैसा भी अच्छा कमा लिया था। एक दिन उसके चाचा ने कहा कि अब तुम वह हार ले आओ। लड़के ने घर जाकर जब हार को देखा, तो समझ गया कि हार नकली है। उसने चाचा को आकर सच बात बताई। तब चाचा ने कहा कि यदि उस समय तुमसे यह बात कहता, तो तुम विश्वास नहीं करते। तुम समझते कि मैं मदद नहीं करना चाहता हूं।
-अशोक मिश्र
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