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पंचतत्व में विलीन होने पर ही रुकती हैं बेलगाम इच्छाएं

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संजय मग्गू
अगर कोई घोड़ा बेलगाम हो जाए और वह दौड़ने लगे, तो वह तब तक नहीं रुकता, जब तक कि वह थककर चूर नहीं हो जाता है। और जब इच्छाएं बेलगाम हो जाती हैं, तो वह तभी रुकती हैं, जब आदमी पंचतत्व में विलीन हो जाता है। इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती हैं। मानो, किसी के पास घर नहीं है। उसकी बड़ी इच्छा है कि वह अपना घर बना पाए। किसी तरह घर बन गया, तो तत्काल एक नई इच्छा जन्म ले लेती है। काश! इसे बढ़िया से सजा पाते। किसी तरह जुगाड़ करके घर सजा भी लिया, तो तुरंत मन में आता है कि घर दो मंजिला होता तो कितना अच्छा होता। मनुष्य की इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। पूरी प्रकृति में एक मनुष्य ही है जो कई बार अपनी इच्छाओं का दास बन जाता है। ज्यादातर लोग अपनी इच्छा पर काबू पा लेते हैं। अपनी परिस्थितियों से समझौता कर लेते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी बेलगाम इच्छाओं के पीछे-पीछे जीवन भर दौड़ते रहते हैं और आखिर में उन्हें हासिल कुछ नहीं होता है। क्योंकि वह अपनी इच्छाओं के गुलाम बनकर वह खुशी, वह आनंद गंवा चुके होते हैं जो उनके जीवन में खुशी के पल आए हुए होते हैं। प्रकृति में पाए जाने वाले सभी जीव, मनुष्य को छोड़कर, प्राकृतिक व्यवस्था के हिसाब से अपना जीवन गुजारते हैं। कोई गाय, बैल, बंदर या दूसरे प्राणी सर्दी का मौसम आने पर किसी कंबल, रजाई या घर की कामना नहीं करते हैं। प्रकृति ने उन्हें सर्दी से बचने के लिए जो संसाधन मुहैया कराया है, उससे ही अपना काम चला लेते हैं। गौरेया अपने सारे पंखों को समेटकर उसी में दुबक जाती है। अपना घोसला बना लेती है। अपने घोसले में वह अपने बच्चों के साथ सर्दी बिता लेती है। लेकिन मनुष्य ऐसा नहीं करता। वह सर्दी से बचने के तमाम उपाय खोजता है। उसने प्रकृति की व्यवस्था से बचने के लिए तमाम उपाय खोज लिए हैं। प्रकृति के खिलाफ जाने वाला मनुष्य पहला और अंतिम जीव है। उसने विपरीत परिस्थितियों से बचने और सुख-सुविधाओं के नाम पर अपने इर्द-गिर्द इतनी चीजें जमाकर रखी हैं कि पूछिए मत। यह सच कहा जाए, तो विलासिता है। वह अपनी इच्छाओं के वशीभूत होकर एक दिन यही विलासिता जरूरत बन जाती है। मजबूरी बन जाती है। आज का युग भौतिक समृद्धि का युग है। विज्ञान और तकनीक ने जीवन को सरल बना दिया है। जीवन के हर क्षेत्र में गति आई है। ऐसे में मनुष्य की इच्छाओं में भी गति आ गई है। पहले तो इच्छाएं मनुष्य के वश में रहीं, लेकिन जैसे-जैसे ढील मिलती गई, इच्छाएं बेकाबू हो गईं। नतीजा, यह हुआ कि मनुष्य किसी काम में आने वाले किसी एक उत्पाद से संतुष्ट नहीं रह पाता है। घर में एक कार मौजूद होने के बावजूद इंसान लेटेस्ट मॉडल की कार खरीदने को उतावला रहता है। कार से कहीं आने जाने का ही तो काम लिया जाता है। लेटेस्ट मॉडल की कार का भी यही उपयोग होना है, लेकिन नहीं, इंसान की फितरत जो ठहरी, इच्छाओं के पीछे भागने की।

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