संजय मग्गू
अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की निगाह सबसे ज्यादा भारत और चीन पर गड़ी हुई है। भारत और चीन पर ज्यादा टैरिफ लगाने की बात वह कई बार कर चुके हैं। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत के दौरान ट्रंप ने एक बात साफ कर दिया कि अब अमेरिका व्यापार घाटा नहीं सहेगा। ट्रंप का कहना है कि दोनों देशों के बीच चलने वाला व्यापार एक ओर झुका हुआ नहीं होना चाहिए। यही वजह है कि उन्होंने मोदी से बातचीत के दौरान और अधिक रक्षा उपकरणों को खरीदने पर जोर दिया। जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका फर्स्ट की नीति पर आगे बढ़ रहे हैं। स्वाभाविक है कि भारत भी अपने हितों का विशेष ध्यान रखेगा। अधिक रक्षा उपकरण खरीदने के मामले में भारत सरकार क्या फैसला लेती है, यह भविष्य के गर्भ में है। हां, चीन ने अमेरिकी चिप बाजार को चुनौती देने की पूरी योजना बना ली है। अमेरिका को उद्योग जगत को एशिया महाद्वीप में सबसे ज्यादा चुनौती भारत और चीन से ही मिलने वाली है। यही वजह है कि ट्रंप के निशाने पर बार भारत और चीन ही रहते हैं। जिस दिन डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में राष्ट्रपति पद की शपथ ले रहे थे, उसी दिन चीन ने ओपनसोर्स एआई एप डीपसीक आर-वन लांच किया है। एक हफ्ते में ही वह पूरी दुनिया में काफी पॉपुलर भी हो गया और अमेरिकी कंपनी ओपन एआई के चैटबॉट चैटजीपीटी से कहीं आगे निकल गया। मजे की बात यह है कि डीपसीक आर-1 को बनाने में चीन को केवल 51 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। डीपसीक के बाजार में आने के एक हफ्ते के अंदर ही अमेरिकी कंपनियों को 86.56 लाख करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा है। यह अमेरिका के लिए एक बहुत बड़ा झटका है। डीपसीक अभी दुनिया का सबसे सस्ता एआई प्लेटफॉर्म है। अगर चैटजीपीटी और डीपसीक के निर्माण लागत की तुलना की जाए, तो दोनों में भारी अंतर है। चैटजीपीटी के निर्माण की इनपुट लागत 15 डॉलर और आउटपुट लागत 60 डॉलर प्रति दस लाख है। वहीं डीपसीक की क्रमश: 0.55 डॉलर और 2.19 डॉलर है। गुणवत्ता के मामले में भी डीपसीक अपने अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी चैटजीपीटी से कहीं ज्यादा आगे है। अमेरिकी राष्ट्रपति की सबसे बड़ी चिंता यह है कि डीपसीक के आने से 43 लाख करोड़ रुपये की उनकी ड्रीम परियोजना स्टारगेट एआई खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है। दरअसल, भारत के साथ-साथ चीन की सारी कंपनियां सस्ती चिप पर जोर दे रही हैं। बाजार का नियम है कि ग्राहक उसी माल को खरीदना पसंद करता है, जो सस्ता और टिकाऊ हो। यह हो सकता है कि आने वाले दिनों में वह अमेरिका में डीपसीक पर प्रतिबंध लगाकर अपने देश में स्टारगेट के लिए बाजार उपलब्ध करवा दें, लेकिन बाकी देशों में तो कुछ नहीं कर सकते हैं। वैसे तो भारत भी डीपसीक को अपने बाजार में घुसने की इजाजत नहीं देगा। चिप बाजार में भारत भी एक शक्तिशाली प्रतिस्पर्धी बनने की राह पर है।
चिप बाजार में चीनी चुनौती से कैसे निपटेंगे डोनाल्ड ट्रंप?
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