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स्वच्छता के मामले में पीछे छूटते देश के गाँव

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वार्षिक स्वच्छता सर्वेक्षण में वर्ष 2022 में लगातार छठी बार इंदौर को देश का सबसे साफ शहर चुना गया है। एक लाख से कम आबादी वाले शहर में महाराष्ट्र के पंचगनी को सबसे साफ शहर के रूप में चुना गया है। पिछले सात सालों से लगातार केंद्र सरकार की ओर से यह सर्वेक्षण कराया जा रहा है। इस अभियान को अगर क्रांतिकारी अभियान कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यह एक ऐसा अभियान है जिसने न केवल शहर से लेकर गांव तक में साफ सफाई को बढ़ावा दिया है, बल्कि इसके प्रति लोगों की सोच को भी बदला है। पहले की तुलना में शहर और गांव ज्यादा साफ रहने लगे हैं। इस वजह से शहरों में जहां कूड़ा करकट का उचित निपटान होने लगा है, वहीं ग्रामीण क्षेत्र भी खुले में शौच से मुक्त होने लगे हैं।
हालांकि अभी देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जो इस अभियान में पीछे छूटते जा रहे हैं।

राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक के कई गांव इसका उदाहरण हैं। जहां आज भी कूड़ा करकट का उचित निपटान नहीं होने से गंदगी जहां तहां फैली रहती है। इससे हर समय बीमारी का खतरा बना रहता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि इन गांवों में स्वच्छ भारत अभियान पूरी तरह से नाकाम हो गया है। सामाजिक संगठनों और स्थानीय प्रशासन के प्रयासों से इस ब्लॉक के ज्यादातर गांव खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। गांव के लगभग सभी घरों में शौचालय का निर्माण हो चुका है। लोग खुले में शौच की बजाय शौचालय का प्रयोग करते हैं। इसका सबसे अधिक लाभ गांव की महिलाओं और किशोरियों को होने लगा है, जिन्हें घर में ही शौचालय सुविधा मिलने से वे कई प्रकार की बीमारियों से भी सुरक्षित हो गई हैं। ऐसी ही कुछ स्थिति बच्चों की भी है जो खुले में शौच और इससे होने वाली बीमारियों से सुरक्षित रहने लगे हैं।


स्वच्छ भारत अभियान के कारण भले ही गांव खुले में शौच से मुक्त हो गया है, लेकिन कूड़ा करकट के उचित निपटान की समस्या लूणकरणसर के कई गांवों में अभी बनी हुई है। लोग जहां तहां अपने घर का कूड़ा फेंक देते हैं। इससे न केवल गंदगी फैल रही है, बल्कि कई प्रकार की बीमारियां भी उत्पन्न होती रहती हैं। इसी ब्लॉक के नकोदेसर गांव में कूड़ा उठाने के लिए गाड़ी तो आती है, लेकिन इसके बावजूद लोग खुले में भी घर का कचरा निकाल कर फेंक देते हैं। कुछ लोग गाड़ियों के आने पर घर का कचरा फेंकते है तो कुछ ऐसे भी घर हैं जहां लोग साफ सफाई के महत्व से अनजान होने के कारण इसकी महत्ता नहीं समझते हैं। खुले आसमान में ही उसे फेंक देते हैं, जो बीमारियों को न्योता देने के लिए पर्याप्त होती है। इसी ब्लॉक के दुलमेरा स्टेशन गांव के लोग कूड़े के निपटान का देसी परंतु वैज्ञानिक तरीका अपनाते हैं। लोग अपने घरों के कूड़े को गाड़ी में डालने की जगह उसे अपने खेतों में दबा देते हैं, जिससे वह खाद बन जाता है और फिर उसे खेतों में फैला दिया जाता है।

इस प्रक्रिया में लोग प्लास्टिक जैसे अपशिष्ट पदार्थों को खुले में फेंक देते हैं, जो हवाओं से इधर उधर उड़ता रहता है और कई बार यह मिट्टी में मिल कर उसकी उर्वरा शक्ति को कमजोर कर देता है। यह देसी तरीका कुछ हद तक सही भी है, लेकिन प्लास्टिक के उचित निस्तारण के लिए उसे कूड़ा उठाने वाली गाड़ियों में ही डालना भलाई है।


वहीं सुईं गांव के युवा सामाजिक कार्यकर्ता मुरली बताते हैं कि हमने गांव को साफ रखने के लिए युवाओं की टोली बना रखी है जो लोगों को स्वच्छता और इससे जुड़े अभियानों के प्रति जागरूक करते रहते हैं। युवाओं की यह टोली यह सुनिश्चित करती है कि गांव में समय समय पर कूड़ा गाड़ी घूमती रहे और लोग खुले में कचरा फेंकने की जगह केवल उसी गाड़ी में ही घर की गंदगी को डालें। वह कहते हैं कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अभी स्वच्छ भारत अभियान को रफ़्तार देने की जरूरत है। ग्रामीणों के इसके प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। लोगों को यह बताने की जरूरत है कि यह केवल एक अभियान ही नहीं है बल्कि गांव को स्वस्थ रखने का एक माध्यम भी है। (चरखा) यह लेखिका के निजी विचार हैं।)

बिमला

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