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विनोबा भावे को लालच छू भी नहीं पाया

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विनोबा भावे हमारे देश के स्वाधीनता संग्राम सेनानी और समाज सुधारक थे। विनोबा भावे ने पूरे देश में पैदल घूम-घूम कर लाखों एकड़ जमीन दान में हासिल की थी ताकि भूमिहीनों को इन जमीनों को देकर उनकी आजीविका का प्रबंध किया जा सके। वैसे विनोबा भावे का नाम विनायक नरहरि भावे था। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के गागोदा गांव में एक चित्तपावन ब्राह्मण के घर में उनका जन्म हुआ था। स्वाधीनता संग्राम के दौरान उन्होंने देखा कि हमारे देश के करोड़ों लोग भूमिहीन हैं। उनकी दशा काफी खराब है। वे दाने-दाने को मोहताज हैं।

उन्होंने सोचा कि यदि वे देश भर के धनिकों और राजाओं-महाराजाओं से भूमि मांगकर इन असहाय लोगों को सौंप दें, तो इनकी आजीविका का साधन हो जाएगा। सो निकल पड़े भूदान महाभियान पर। वे सच्चे और संत पुरुष थे। मोहमाया उनका छू भी नहीं गई थी। वे निराभिमानी व्यक्ति थे। संत वेष में वे जिस भी राजा-महाराजा के पास जाकर भूदान महायज्ञ के बारे में बताते तो कोई भी जमीन देने से इनकार नहीं कर पाता था। इसके लिए वे बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित पूरे देश में घूमे। वे जहां जाते-पैदल ही जाते थे।

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दक्षिण और पूर्व भारत में भी उनका भव्य स्वागत सत्कार हुआ। लाखों मील पैदल चलकर विनोबा भावे ने चालीस लाख एकड़ जमीन इकट्ठा कर लिया। एक दिन की बात है, उनको ढेर सारी जमीन दान में उन्हें मिली। जब हिसाब करके लोगों ने बताया, तो उन्होंने लोगों से कहा कि इतनी जमीन मिलने के बाद भी मेरे हाथ में क्या मिट्टी लगी है। उनका यह कहने का भाव बहुत गहरा था। चालीस लाख एकड़ जमीन दान में मिलने के बावजूद उन्हें इन जमीनों का रत्तीभर भी मोह नहीं था। ऐसे थे हमारे देश के संत विनोबा भावे।

Ashok Mishra

-अशोक मिश्र

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