जीने का अंदाज तो पूरी दुनिया को सिंगापुर सिखा रहा है। यहां रहने वालों की औसत आयु बीस साल बढ़ गई है। है न चमत्कार! इस चमत्कार के पीछे उनकी एक सोच है। वे ज्यादा से ज्यादा पैदल चलते हैं, मस्त रहते हैं, हेल्दी खाना खाते हैं। सिंगापुर में रहने वालों ने अपनी जीवन शैली में आमूलचूल परिवर्तन किया है। हमें भी सीखना चाहिए। हमारे देश में आज के युवाओं को भले ही पांच सौ मीटर जाना हो, वे स्कूटर, कार से जाना पसंद करते हैं। पैदल चलना तो जैसे पसंद ही नहीं है।
जो कुछ मिल गया, उदरस्थ कर लिया। न यह ध्यान रहा कि वह पौष्टिक है या नहीं। हमारे यहां एक कहावत बहुत पुरानी है कि अजगर करे न चाकरी, पक्षी करे न काम, संत मलूका कह गए सबके दाता राम। नतीजा यह हो रहा है कि देश में हृदय रोग, डायबिटीज, मोटापा जैसे रोगों के मरीज बेतहाशा बढ़ रहे हैं।
मानसिक रोगियों की संख्या में भी बहुत तेजी से इजाफा हो रहा है। जब और जहां जैसा मिले, खा लेने की परिपाटी हमें रोगी बना रही है, इस बात को समझने की जरूरत है। वहीं सिर्फ 60 लाख आबादी वाले देश सिंगापुर में सुबह उठते ही लोग एक्सरसाइज करते हैं। सूर्योदय से पहले उठना जैसे उनकी आदत में है। हमारे पुरखे भी सूर्योदय से पहले उठते थे। वह जानते थे कि सुबह सूरज निकलने से पहले उठने से सकैंडियन क्लॉक अच्छी तरह चलती है। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। सिंगापुर के पार्क हरेभरे और आक्सीजन छोड़ने वाले पेड़-पौधों से भरे रहते हैं। सुबह उठते ही सिंगापुर के लोग पार्क की ओर दौड़ते हैं। आक्सीजन युक्त हवा जो उन्हें लेनी होती है। यदि कोई पैदल जा रहा या मेट्रो का उपयोग कर रहा है, तो उसे प्राथमिकता प्रदान की जाती है। कार और पेट्रोल इतना महंगा है कि उसे मेंटेन करना बहुत मुश्किल है।
अमेरिका से भी चार गुना ज्यादा महंगी हैं कारें और पेट्रोल। लगभग हर घर से कुछ ही दूरी पर मेट्रो स्टेशन हैं। यही वजह है कि लोग ज्यादा से ज्यादा पैदल चलना पसंद करते हैं। उनके लिए दस-बीस हजार कदम चलना मामूली बात है। सिर्फ बुढ़ापा या अपंगता की स्थिति में ही लोग चलना बंद करते हैं। वहां, फास्टफूड की अपेक्षा सादा और पौष्टिक खाना ज्यादा सस्ता है। वहां के रेस्तरां और होटल्स पौष्टिक भोजन पर सबसिडी भी देते हैं। बुजुर्गों के लिए तो सिंगापुर में सबसे अच्छी व्यवस्था है। अस्पताल अपने इलाके में रहने वाले बुजुर्गों के स्वास्थ्य और खानपान पर पूरी निगरानी रखते हैं। बुजुर्गों की सेहत पता करने के लिए अपनी नर्सों को भेजते हैं। ऐसा नहीं है, आज जो सिंगापुर कर रहा है, हमारे देश में नहीं था। आज से तीन-चार दशक पहले तक हमारे देश में भी औसत आयु ठीकठाक थी। बुजुर्ग लंबा जीवन जीते थे। गांव और शहर में लोग एक दूसरे के संपर्क में रहते थे।
दिनभर में एक बार गांव या मोहल्ले के लोग जरूर एक दूसरे का हालचाल पूछ लेते थे। दिन भर खेतों में काम करके आने वाले ग्रामीण शाम को सामूहिक रूप से मनोरंजन करते थे। वह चौपाल पर या किसी के घर में बैठक गप्पें लड़ाते थे। हंसी मजाक करते थे। आल्हा और भजन गाते थे। जीवन भर सक्रिय रहने वाले लोग कई तरह की बीमारियों से दूर रहते थे। हृदय रोग, कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज आदि रोग तो उन्हें छू भी नहीं पाते थे। हम अपनी जीवन शैली सुधारकर स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।