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आतंकवाद हो और जिंदगियाँ सुरक्षित रहें

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युद्ध का नाम लेते ही आंखों के सामने क्षत विक्षत शव, बिखरा हुआ रक्त और असंख्य निरीह लोगों की चीखें, क्रंदन, रुदन और जीवन की नश्वरता का सजीव चित्रण हो जाता है। सब कुछ एक पल में समाप्त हो जाता है, लोगों के जीवन जीने की अभिलाषा पर विराम लग जाता है। खुशियां झटके के साथ खत्म हो जाती हैं, जिंदगी दर्द की कहानी बन जाती है। कहने को तो छोटा सा शब्द है युद्ध पर इसका अर्थ कितना भयावह है। अभी यूक्रेन और रूस के युद्ध की समाप्ति भी नहीं हुई। उनके जख्म भरे भी नहीं कि इजरायल और हमास के आतंकवादियों द्वारा छेड़ा गया युद्ध जिंदगियों को असमय ही निगलने आ गया।


7 अक्टूबर को फिलिस्तीन की आजादी के लिए हमास ने सबसे बड़ा हमला किया। 5000 रॉकेट दागकर लोगों के दिलों में खौफ पैदा किया। इजरायल की तरफ से हुए हमले आतंकियों के लिए मौत का फरमान लेकर आए हैं। हमास को सभी देश आतंकवादी समझते हैं, उस हमास ने हमले में अपने शौर्य का प्रदर्शन मासूमों और गर्भवती महिलाओं के गर्भ पर करके जिस निरंकुशता का परिचय दिया है उससे ज्यादा कष्टकारी कुछ नहीं हो सकता। फिर भी हमास के पक्ष में सभी देशों से कुछ समर्थक उसका साथ देने के लिए समूह में संगठित होकर आवाजें बुलंद कर रहे हैं।
सही गलत में तो फर्क करना चाहिए।

येरुसलम का विवाद बहुत पुराना है। 1918 में ब्रिटेन ने पहले वर्ड वॉर में जीत के पश्चात शासन अपने हाथ में आने पर यहूदियों के लिए निवास स्थान बनवाए। 1922 से 1935 की अवधि में यहूदियों की संख्या बढ़ने से अरबी लोगों में असुरक्षा की भावना भर गई। अपना अधिकार मानकर वे यहूदियों की बढ़ती संख्या से आशंकित हो गए। उन्हें अपने हितों की चिंता होने लगी। आपसी युद्ध होने लगे, दो समुदाय का होने से संघर्ष बढ़ने लगा। दोनों पक्षों के लोग युद्ध में मारे जाते रहे। जमीन के टुकड़े की लड़ाई में यहूदियों और अरबी लोगों के बीच की लड़ाई धर्म की लड़ाई बन गई जो बहुत पुरानी है, जिसमें लोगों का खून बहा है।


जब जब युद्ध होते रहे लोग मरते रहे। ब्रिटेन के लिए यहूदियों और अरबी लोगों दोनों में सामंजस्य बनाना मुश्किल हो गया। वो अपनी सेना की वापसी कर लेता है और इस विवाद को नवगठित यूएन के पास ले जाता है। फिलिस्तीन वाले भाग में आधा यहूदियों को और आधा अरब देश के लोगों के लिए सुनिश्चित किया गया। यहूदी तो संतुष्ट रहे, लेकिन अरब के लोगों ने स्वीकार नहीं किया। वे फिलिस्तीन को अपना मानते थे। यों तो यहूदी भी फिलिस्तीन के लिए एकजुट थे पर आधा स्वीकार करने को तैयार हो गए। जमीन की लड़ाई धर्म की लड़ाई बन गई और संघर्ष होते रहे। विवाद गहराते रहे। युद्ध होते रहे। 1976 के छह दिवसीय युद्ध में फिलिस्तीन के समूचे क्षेत्र पर इजरायल का कब्जा हो जाता है। इजराइल द्वारा वोस्ट बैंक की छापेमारी में फिलिस्तीन के 300 व्यक्ति की मौत होने से वहां के लोगों की नाराजगी इजरायल से बढ़ गई। येरुसलम में विश्व की सबसे बड़ी तीसरी मस्जिद में रेड के कारण भी फिलिस्तीन के लोग इजरायल से नाराज थे। हमास ने अवसर का फायदा उठाया और हमला कर दिया।


दोनों पक्षों के युद्ध में विनाश की दास्तां लिखी जा रही है। गाजा में इजरायल द्वारा लगातार बम बरसाए जाने से हमास के 320 ठिकाने नष्ट हो गए हैं। फिलिस्तीन का कहना कि इजरायल के हमले में 182 बच्चे और 436 नागरिकों की मौत हो गई है। बड़ा दु:खदायी है बेगुनाहों का मरना। रिहाइशी इमारतों पर हमला करने से छटपटाती जिंदगियों की कहानी अधर में ही रह गई है। अस्पतालों में सुविधा ना होने से जो जिंदगियां मौत से जूझ रही हैं उनकी पीड़ा का अनुमान लगाना कठिन है। संघर्ष रोकने को प्रयासरत होने की जरूरत है। हिंसा, आतंकवाद और लोगों की मृत्यु होना यद्यपि चिंता का विषय है तो सहयोग से कैसे युद्ध को रोका जाए ये विचारणीय है। किसी का भी लहू व्यर्थ ना बहे और आतंकवाद का सफाया हो ये प्रयत्न होना चाहिए।(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

अनिल धर्मेश

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