Sunday, February 23, 2025
20.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiहर्ष को अपना खजाना खाली करके मिला संतोष

हर्ष को अपना खजाना खाली करके मिला संतोष

Google News
Google News

- Advertisement -


सोलह साल में अपने भाई राज्यवर्धन की हत्या के बाद कन्नौज का शासन संभालने वाले हर्षवर्धन ने प्रजा की रक्षा, सुख और शांति के लिए अपना कई बार सर्वस्य न्यौछावर किया। उसे सोलह साल की उम्र में ही अपने भाई के हत्यारे गौड़ नरेश शशांक के खिलाफ युद्ध में उतरना पड़ा। हर्षवर्धन ने एक विशाल सेना तैयार की और करीब छह साल में वल्लभी (गुजरात), पंजाब, गंजाम (उड़ीसा), बंगाल, मिथिला (बिहार) और कन्नौज (उत्तर प्रदेश) जीत कर पूरे उत्तर भारत पर अपना दबदबा कायम कर लिया। जल्दी ही हर्षवर्धन का साम्राज्य गुजरात (पश्चिम) से लेकर आसाम (पूर्व) तक और कश्मीर (उत्तर) से लेकर नर्मदा नदी (दक्षिण) तक फैल गया। हर्षवर्धन ने हमेशा अपनी प्रजा का ध्यान रखा।

हर पांच साल पर वह प्रयागराज आकर संगम के किनारे अपनी प्रजा को खुले मन से दान देता था। एक बार कुंभ के दौरान उसने वहां आए लोगों को दान देना शुरू किया। कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं गया। इस पर हर्षवर्धन बहुत खुश था। लेकिन तभी एक व्यक्ति ने आकर भिक्षा की याचना की। राजकोष तब तक दान देने में खाली हो चुका था। दान देने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। इस पर हर्ष ने अपने मंत्री की ओर देखा, तो उसने मुकुट और उनके राजसी वस्त्र की ओर इशारा किया।

राजा हर्ष ने इशारा समझकर अपना मुकुट उतारा, वस्त्र उतारे और उस व्यक्ति को सौंप दिया। मंत्री ने उस व्यक्ति को उपहार लेने का इशारा किया। मंत्री ने झट से हर्ष को सामने की पालकी में बैठने का इशारा किया। अपना सब कुछ जनता पर लुटाने के बाद हर्ष के चेहरे पर संतुष्टि पूर्ण मुस्कान थी। वह पालकी में बैठकर अपनी बहन राजश्री के पास गए। उनकी बहन ने पुराने वस्त्र पहनने को दिए और उनका स्वागत किया।

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

नादान और नफरत करने वाले क्या जानें ‘उर्दू की मिठास’

तनवीर जाफ़री                                 आपने छात्र जीवन में उर्दू कभी भी मेरा विषय नहीं रहा। हाँ हिंदी में साहित्य रत्न होने के नाते मेरा सबसे प्रिय...

महिला की पहचान नाम से होगी या ‘तलाकशुदा’ से?

- सोनम लववंशी समाज में भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है। यह सोच, संस्कार और व्यवस्था का दर्पण होती है। जब भाषा में...

Recent Comments