सुकरात एथेंस के एक प्राचीन यूनानी दार्शनिक थे जिन्हें पाश्चात्य दर्शन के संस्थापक और पहले नैतिक दार्शनिकों में से एक के रूप में श्रेय दिया जाता है। सुकरात ने स्वयं कोई ग्रंथ तो नहीं लिखा, इसलिये उन्हें, मुख्य रूप से शास्त्रीय लेखकों , विशेष रूप से उनके छात्र प्लेटो और जेनोफन के मरणोपरांत वृतान्तों के माध्यम से जाना जाता है। प्लेटो द्वारा रचित ये वृत्तांत, संवाद के रूप में लिखे गए हैं जिसमें सुकरात और उनके वातार्कार, प्रश्न और उत्तर की शैली में किसी विषय की समीक्षा करते हैं; उन्होंने सुकरातीय संवाद, साहित्यिक शैली को जन्म दिया।
एक बार की बात है। वह बाजार से गुजर रहे थे। रास्ते में उन्हें एक परिचित मिला। उसने अभिवादन के बाद कहा कि जानते हो, कल मुझे आपका एक पुराना मित्र मिला था। आपके बारे में जानते हैं क्या कह रहा था? यह सुनते ही सुकरात ने कहा कि यह बात आप मुझे क्यों बता रहे हैं? यदि बताना बहुत जरूरी है, तो पहले आप मेरे तीन प्रश्नों का उत्तर दें। यह सुनकर वह आदमी बोला, पूछिए। सुकरा ने कहा कि जो बात आप मुझे बताने जा रहे हैं क्या वह बात पूरी तरह सही है? उस आदमी ने पल भर सोचा और कहा कि नहीं। सुकरात ने मुस्कुराते हुए कहा कि इसका मतलब है कि तुम्हें खुद विश्वास नहीं है कि बात सही या गलत।
सुकरात ने अगला सवाल किया कि जो बात आप मुझे बताने जा रहे हैं, वह मेरे लिए अच्छी है। उस व्यक्ति ने कहा, नहीं। सुकरात ने तीसरा प्रश्न किया, जो बात आप मुझे बताने जा रहे हैं, वह मेरे किसी काम की है? उस आदमी ने कहा कि नहीं। तो सुकरात ने कहा कि तब फिर आप मुझे ऐसी बात क्यों बताना चाहते हैं? आप भी ऐसी बात क्यों सुनते हैं? यह सुनकर वह आदमी शर्मिंदा होकर घर चला गया।
-अशोक मिश्र