संजय मग्गू
इन दिनों प्रदेश के किसान गेहूं और अन्य फसलों की बुआई में लगे हुए हैं। रबी की फसलों में गेहूं, अलसी, मसूर, जौ, चना, सरसों और तिलहन आदि आती हैं। दीपावली त्यौहार बीतने के बाद से ही किसान खेती के काम में जुट जाता है। कुछ किसान तो खरीफ की फसल काटने के बाद से ही खेत को तैयार करने में जुट जाते हैं और यदि संभव हुआ तो दीपावली त्यौहार से पहले ही रबी की फसलें बो देते हैं। हालांकि ऐसे किसानों की संख्या बहुत कम होती है। गेहूं आदि बोने के तुरंत बाद ही किसानों को खाद की जरूरत पड़ती है। यदि किसान को अच्छा उत्पादन चाहिए, तो उसे डीएपी सहित अन्य खादों की जरूरत पड़ती है। लेकिन प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से किसान बार-बार यही कह रहे हैं कि उन्हें डीएपी खाद के लिए कई दिनों तक भटकना पड़ रहा है। उन्हें खाद नहीं मिल पा रही है। सरकारी आंकड़ा बताता है कि पिछले साल रबी की फसलों के लिए अक्टूबर में डीएपी की कुल खपत 1,19,470 मीट्रिक टन थी। वहीं इस साल यानी अक्टूबर 2024 में 1,14,000 मीट्रिक टन डीएपी खाद किसानों को उपलब्ध कराया गया था। पिछले साल की अपेक्षा इस साल डीएपी खाद की खपत कुछ कम रही। इस समय प्रदेश में 24 हजार मीट्रिक टन डीएपी खाद उपलब्ध है। जिसे किसानों तक पहुंचाने के लिए व्यवस्था की जा रही है। यही बात प्रदेश के मुखिया सीएम सैनी भी कह रहे हैं कि प्रदेश में डीएपी खाद की उपलब्धता कम नहीं है। सभी किसानों को उपयुक्त समय पर आवश्यकता के अनुसार खाद मिलेगी। लेकिन प्रदेश के किसानों का कहना कुछ अलग है। कई जिलों में सरकारी खाद एजेंसियों ने अपने गेट पर ‘खाद नहीं है’ की तख्ती टांग रखी है। किसानों का आरोप है कि सरकारी खाद एजेंसियों में कार्यरत लोग खाद कब तक उपलब्ध होगी, इसकी जानकारी भी सही तरीके से नहीं देते हैं। नतीजा यह होता है कि मायूस किसान खाली हाथ लौटने को मजबूर हो जाता है। वहीं खाद की निजी दुकानों पर धड़ल्ले से डीएपी खाद बेची जा रही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि निजी खाद विक्रेता सरकारी एजेंसियों के अधिकारियों, कर्मचारियों से मिलीभगत करके राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि प्रदेश से डीएपी खाद लाकर मनमाने दाम पर बेच रहे हैं। जरूरतमंद किसान थक हारकर महंगे दाम पर खाद खरीदने को मजबूर है। आरोप तो यह भी लगाया जाता है कि जब किसानों को खाद की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तो सरकारी खाद एजेंसियों में खाद की कमी हो जाती है। प्रदेश सरकार को इस मामले में ध्यान देना चाहिए। यदि इस मामले में थोड़ा सख्ती से काम लिया जाए, तो समय पर खाद मिलने से फसल उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और किसानों को लुटने से भी बचाया जा सकता है।
संजय मग्गू