संजय मग्गू
साल 2024 का नोबेल शांति पुरस्कार जापान की संस्था निहोन हिंदानक्यो को देने की घोषणा हुई है। यह संस्था 1956 में गठित हुई थी द्वितीय विश्व युद्ध के दस साल बाद। यह संस्था परमाणु हथियारों के दोबारा उपयोग और निर्माण के खिलाफ लोगों को जागरूक करती है। देशों के राष्ट्राध्यक्षों से अपील करती है कि वह युद्ध में परमाणु बमों का उपयोग कतई न करें, बल्कि उसका निर्माण भी न करें। शुरुआत में संस्था निहोन हिंदानक्यो में वे लोग शामिल थे जिन्होंने 6 और 9 अगस्त 1945 को नागासाकी और हिरोशिमा पर बरसाए गए बमों की त्रासदी को अपनी आंखों से देखा, भोगा था। इतिहास बताता है कि 6 अगस्त 1945 को जब हिरोशिमा में यूरेनियम बम गिराया गया था, तो एक लाख चालीस हजार लोग मारे गए थे। इस हमले में बचे लोगों ने बाद में दुनिया को बताया कि उनके सामने लोग घास-फूस की तरह जल रहे थे। उनकी चमड़ी और मांस ठीक उसी तरह पिघलकर गिर रही थी जैसे गर्मी पाकर मोम पिघल जात है। इसके तीसरे दिन नागासाकी पर अमेरिका ने परमाणु बम से हमला किया और इसमें 74 हजार लोग मारे गए। युद्ध इतना भयानक होता है, इसे पूरी दुनिया ने पहली बार जाना। इसके बावजूद पूरी दुनिया में युद्ध की होड़ आज भी नहीं रुकी है। सन 1952 में अमेरिका ने जो बम तैयार किया, वह नागासाकी में गिराए गए बम से हजार गुना ज्यादा ताकतवर था। उसके बाद तो पूरी दुनिया में परमाणु बमों को बनाने की ऐसी रेस शुरू हुई जिसका अंत आज तक नहीं दिखाई दे रहा है। अब अमेरिका, रूस, भारत, चीन, फ्रांस, जर्मनी, ईरान, इजरायल जैसे न जाने कितने देशों ने सन 1945 और 1952 के मुकाबले में लाखों गुना ज्यादा संहारक हथियार बना लिए हैं। अगर भूल से भी कहीं परमाणु बम फट गए, तो पूरी दुनिया में जो विनाश होगा, उसकी कल्पना करके ही रोगंटे खड़े हो जाते हैं। पूरी दुनिया में स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव विकास और अनाज उत्पादन पर कुल मिलाकर जितना खर्च किया जाता है, उससे हजार गुना पैसा देश की सुरक्षा और अन्य देशों के बीच संतुलन बनाने के नाम पर हथियार उत्पादन और खरीदने पर खर्च किया जाता है। सेना पर खर्च किया जाता है। आखिर क्यों? मानव के विकास पर खर्च करने की जगह मानव के विनाश को प्राथमिकता क्यों दी जा रही है? देश की जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा हथियारों पर खर्च किया जा रहा है। अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस जैसे देशों ने हथियारों का उत्पादन करके दूसरे देशों में व्यापार करना बहुत पहले शुरू कर दिया था। अब तो हालत यह है कि पाकिस्तान जैसा नंगा भूखा देश भी परमाणु हथियार बना चुका है, जैसा कि मीडिया रिपोर्ट में बताया जाता है। मनुष्य में युद्ध की यह भूख कम शांत होगी? कब पूरी दुनिया में हथियारों की होड़ खत्म होगी? कब पूरी दुनिया के लोग बिना किसी सीमाओं के एक दूसरे देश में शांतिपूर्वक रह सकेंगे? कब हम वैश्विक परिवार की तरह जीवन यापन कर पाएंगे। कब निहोन हिंदानक्यो जैसी संस्थाओं के सपने पूरे होंगे?
संजय मग्गू