श्वेत महिला ने नीग्रो बच्चे को लिया गोद
अशोक मिश्र
अमेरिकी समाज में रंगभेद की बुरी भावना बहुत पहले से ही थी। सदियों से अमेरिकी समाज में गोरे-काले का भेद चला आ रहा था। हालांकि आज भी यह भावना अमेरिकियों में पूरी तरह खत्म नहीं हुई है, लेकिन कम जरूर हुई है। रंग-भेद विरोधी कानून बन जाने के बाद ही यह भावना कमजोर पड़ी है। अमेरिका में गोरे अपने को सर्वश्रेष्ठ मानकर अश्वेत लोगों से बहुत बुरा बर्ताव करते थे। अश्वेत नागरिकों को गोरों की अपेक्षा अधिकार भी कम मिले हुए थे। अमेरिकी समाज के रंगभेद की एक घटना स्वामी रामतीर्थ से जुड़ी हुई है। सन 1902 के आसपास की घटना है। तब स्वामी रामतीर्थ अमेरिका के सैनफ्रांसिस्को की यात्रा पर गए हुए थे। वहां वह यूनिटी चर्च में अक्सर प्रवचन दिया करते थे। एक दिन वह प्रवचन देकर उठे, तो एक महिला ने आकर उनसे कहा कि वह बहुत दुखी है। उसे शांति और सुख की तलाश है। यह सुनकर स्वामी रामतीर्थ ने उस महिला से कहा कि वह उसे सुख और शांति का मार्ग बता सकते हैं, लेकिन उनकी बात को उसे मानना होगा। उस महिला ने कहा कि वह मार्ग क्या है? तब स्वामी रामतीर्थ ने कहा कि अभी कुछ ही दिनों पहले आपके पुत्र की मृत्यु हुई है। यदि आप किसी नीग्रो बच्चे को गोद ले लें और उसे पुत्र की तरह प्यार दें और उसका लालन पालन करें तो आपका दुख कम हो सकता है। उन दिनों श्वेत महिला का अश्वेत बच्चे को गोद लेना अमेरिकी समाज में आसान नहीं था। लेकिन महिला ने कुछ दिनों बाद ऐसा ही किया। धीरे-धीरे उस नीग्रो बच्चे के प्रति उस महिला का प्रेम बढ़ता गया और वह अपने पुत्र का दुख सचमुच भूल गई। स्वामी रामतीर्थ ने उस महिला के माध्यम से अमेरिकी समाज को रंगभेद की नीति छोड़ने का संदेश दिया।
अशोक मिश्र