नए संसद के उद्घाटन को लेकर देश भर में घमासान मचा हुआ है। ढेर सारे विपक्षी दलों ने 28 मई को होने वाले उद्घाटन समारोह के बहिष्कार की घोषणा की है।
विपक्षी दलों को सबसे बड़ा ऐतराज 28 मई और प्रधानमंत्री के उद्घाटन करने को लेकर है। आरोप लगाया जा रहा है कि 28 मई को विनायक दामोदर सावरकर की 140वीं जयंती है, इसी वजह से नई संसद के उद्घाटन की तारीख 28 मई रखी गई है।
महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने तो यहां तक कहा है कि प्रधानमंत्री को संसद भवन का नाम सावरकर भवन और सेंट्रल हाल का नाम माफी कक्ष रख देना चाहिए। दरअसल, विनायक दामोदर सावरकर की आलोचना ब्रिटिश हुकूमत के दौरान अंग्रेजों को लिखे गए माफी नामे के लिए होती है।
कहा जाता है कि उन्होंने अपने माफी नामे में अंग्रेजी हुकूमत के पक्ष में काम करने का आश्वासन दिया था। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि महात्मा गांधी की हत्या में भी सावरकर का हाथ था, लेकिन यह बात आज तक साबित नहीं हो सकी है। अब इस मामले में सच क्या है? यह तो सरकार ही बता सकती है।
28 मई को नई संसद के उद्घाटन के पीछे एक संयोग भी हो सकता है, लेकिन विपक्ष इसे मानने को तैयार नहीं है। विपक्ष का आरोप यह भी है कि संसद में सर्वोच्च स्थान राष्ट्रपति, उनके बाद उप राष्ट्रपति और फिर दोनों सदनों के अध्यक्षों का होता है। संसद में प्रधानमंत्री की प्रत्यक्ष कोई भूमिका नहीं होती है, इसलिए नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति को करना चाहिए। यदि ये दोनों लोग उस दिन उपलब्ध न हों, तो इसका उद्घाटन दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी से कराया जाना चाहिए।
अब इस मामले में सही और गलत क्या है? इसका फैसला कोई नहीं कर सकता है। यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नई संसद के लिए भूमि पूजन करना और बनने के बाद उसका उद्घाटन करना गलत है, तो अगस्त 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संसद एनेक्सी भवन का उद्घाटन किया था।
तो क्या इंदिरा गांधी का संसद एनेक्सी भवन का उद्घाटन करना गलत था? 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद की पुस्तकालय का उद्घाटन किया था, तो इस नजरिये से उनका पुस्तकालय का उद्घाटन करना भी गलत था।
हालांकि विपक्षी दल इसके जबाव में तर्क देते हैं कि इंदिरा गांधी ने संसद एनेक्सी भवन का उद्घाटन तब किया था, जब देश में आपातकाल लागू था। 1987 को पुस्तकालय भवन के लिए भूमि पूजन तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष शिवराज पाटिल ने किया था, राजीव गांधी ने सिर्फ शिलान्यास किया था।
पुस्तकालय भवन बनने पर 2002 में उसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने किया था। संसदीय लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष का टकराव चलता रहा है और चलता रहेगा। लेकिन नई संसद के उद्घाटन के ऐतिहासिक मौके पर ऐसे विवाद हमारी लोकतांत्रिक प्रतिष्ठा को गिराते हैं। हां, लोकतांत्रिक देश की संसद में राजशाही के प्रतीक सेंगोल को रखना जरूर समझ से परे है।
संजय मग्गू