अंतरिम बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा को 370 सीटें मिलेंगी। एनडीए गठबंधन भी चार सौ के पार सीटें हासिल करेगा। अभी तक भारत के संसदीय लोकतंत्र में 425 सीटें हासिल करने वाली अकेली पार्टी कांग्रेस है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उमड़ी सहानुभूति की लहर पर सवार राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने सारे कीर्तिमान तोड़ दिए थे। उस समय कांग्रेस सांगठनिक तौर पर काफी मजबूत थी। उसका मजबूत संगठन कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुजरात से लेकर असम तक था। लेकिन भाजपा लाख प्रयास करने के बावजूद पूरे देश में अपना मजबूत संगठन खड़ा कर पाने में सफल नहीं हो पाई है। इसी इतिहास को दोहराने की मंशा शायद पीएम नरेंद्र मोदी पाले हुए हैं। यह संभव है। लेकिन जिस तरह आज भारत रत्न चौधरी चरण सिंह, पीवी नरसिम्हाराव और स्वामीनाथन को देने की घोषणा की गई है, उससे यही प्रतीत होता है कि खुद भाजपा को 370 सीटें जीत पाने को लेकर शक है। यही वजह है कि उत्तर से लेकर दक्षिण तक साधने की कोशिश की जा रही है।
दक्षिण में सेंध लगाने के लिए पीवी नरसिम्हाराव और जाटों को अपने पाले में लाने के लिए चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की गई है। अगर हम चुनावी समीकरणों को ध्यान में रखें, तो 543 सीटों में से 150 सीटें ऐसी हैं जिन पर भाजपा आज तक कभी नहीं जीत पाई है। इस बार भी कुछ सीटों पर जीत पाएगी, इसकी संभावना भी बहुत कम दिखाई देती है। अब अगर 543 सीटों में से डेढ़ सौ सीटें घटा देते हैं, तो सीटें बचती हैं 393। आज के हालात में क्या भाजपा के पक्ष में उस तरह की लहर चल रही है जिस तरह इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के पक्ष में सहानुभूति लहर चल रही थी। यकीनन नहीं।
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राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर भावनात्मक हिंदी पट्टी के लोग ही महसूस कर रहे हैं। अगर थोड़ी देर के लिए यह मान लिया जाए, तो पांच फीसदी फ्लोटिंग वोट भाजपा के पक्ष में चले जाएंगे, तो भी यह संख्या 325 से 342 तक ही पहुंचती है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा को वर्ष 2013 में 31 फीसदी वोट मिले थे, तब उसका आंकड़ा पहुंचा था 282। इसके बाद लोकसभा चुनावों में यकीनन उसे पहले की अपेक्षा छह फीसदी वोट ज्यादा मिले और सीटों की संख्या 303 तक पहुंच गई थी।
अब अगर भाजपा को 370 सीटों पर विजय हासिल करनी है, तो उसे पहले दस से बारह फीसदी वोटों को बढ़ाना होगा। इतना ही नहीं, उसे लचीला रुख अख्तियार करके उन सभी छोटे-छोटे दलों से गठबंधन करना होगा, जो अपने क्षेत्र में प्रभाव रखते हों। इतना ही नहीं, विपक्षी दलों के भी वोट बैंक में भाजपा को सेंध लगानी होगी। यह कैसे होगा, इसके बारे में भाजपा को सोचना होगा। वैसे भाजपा अपने इस मिशन में काफी दिनों से लगी हुई है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के महत्वपूर्ण नेताओं को येन-केन प्रकारेण अपने में शामिल करने की मुहिम चला ही रखी है। इसके लिए तो बाकायदा एक कमेटी बनाई गई है जो फैसला करेगी कि किसको अपने में शामिल किया जाए, किसको नहीं।
-संजय मग्गू
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