संजय मग्गू
मध्य पूर्व में स्थितियां काफी बदतर होती जा रही हैं। पिछले साल अक्टूबर में हमास और इजरायल के बीच शुरू हुए युद्ध अब विस्तार ले चुका है। इजरायल ने लेबनान और यमन पर हमला करके इसे विस्तार दे दिया है। ईरान के भी इस युद्ध में कूद जाने के बाद अब खेमेबंदी शुरू हो गई है। चार साल बाद आज जिस तरह ईरान के सबसे बड़े धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ने खुलेआम जुमे की नमाज के दौरान अरब देशों से इजरायल के खिलाफ एकजुट होने की अपील की है, उससे साफ हो गया है कि अब कुछ ही दिनों में यह खेमेबंदी रफ्तार पकड़ेगी। मध्य पूर्व के कुछ देश इजरायल के पक्ष में जाएंगे, तो कुछ ईरान के साथ खड़े होंगे। इससे स्थितियां और खराब होंगी। खामेनेई ने जिस तरह इजरायल को सबक सिखाने के लिए लोगों से एकजुट होने की बात कही है, उससे तो यही प्रतीत होता है कि मध्य पूर्व में युद्ध की चिन्गारी कभी भी शोला बन सकती है। यदि इजरायल ने ईरान के तेल उपक्रमों पर हमला किया, तो स्वाभाविक है कि ईरान भी इसका जवाब देगा और हालात बिगड़ेंगे। ईरान और लेबनान पर हुए हमले के बाद अमेरिकन राष्ट्रपति जो बाइडेन विवश नजर आ रहे हैं। इजरायल उनकी एक नहीं सुन रहा है। राष्ट्रपति बाइडेन कुछ ही हफ्तों बाद अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के चलते कोई कठोर कदम उठाने से बच रहे हैं। यदि कठोर कदम उठाया, तो राष्ट्रपति का चुनाव डोनाल्ड ट्रंप जीत सकते हैं। हालांकि पिछले हफ़्ते इसराइल ने कहा था कि अमेरिका की ओर से आठ अरब 70 करोड़ डॉलर का सहायता पैकेज मिला है ताकि वह अपनी सैनिक कार्रवाइयों को जारी रख सके। ऐसी स्थिति में नहीं लगता है कि अमेरिका इस मामले में कुछ कर पाएगा। रूस यूक्रेन युद्ध में फंसे होने के बाद भी ईरान की सहायता में आगे आ सकता है। रूस और ईरान मध्य पूर्व एशिया में एक दूसरे काफी करीब माने जाते हैं। रूस ने तो हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह और अन्य कमांडरों की हत्या की निंदा की है। इस बात से पूरी दुनिया वाकिफ है कि जिसके पक्ष में अमेरिका खड़ा होता है, उसके विरोधी के साथ रुस हमेशा खड़ा होता रहा है। यह भी माना जा रहा है कि लेबनान, यमन और गजापट्टी में हमास को बैक डोर से रूस का समर्थन हासिल है। ठीक उसी तरह जिस तरह एक ओर तो अमेरिका युद्ध रोकने की बात करता है, तो वहीं दूसरी तरफ वह इजरायल को हथियार, गोला बारूद और इंटेलिजेंस सपोर्ट दे रहा है। चीन इस मामले में भी कोई बड़ी भूमिका नहीं निभा सकता है। वह इस मामले सिर्फ युद्ध खत्म करने और मध्य पूर्व शांति स्थापित करने की बात तो कह रहा है, लेकिन कोई प्रयास करता नहीं दिख रहा है। रही भारत की बात, तो वह शायद ही इस पचड़े में फंसने की बात सोचे। वह हमेशा की तरह दोनों पक्षों में संतुलन बनाए रखना चाहेगा। वह ईरान और इजरायल दोनों से युद्ध रोकने और बातचीत से मामले को सुलझाने के पक्ष में है।
संजय मग्गू