करनाल में आज नारी शक्ति वंदन अभियान के तहत एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कार्यक्रम में घोषणा की कि प्रदेश की तीन लाख महिलाएं लखपति दीदी बनाई जाएंगी। इसमें से पांच हजार महिलाएं ड्रोन पायलट बनेंगी। अब आप पहले यह समझिए कि लखपति दीदी कौन हैं? लखपति दीदी वे महिलाएं हैं जिनकी आमदनी सालाना एक लाख रुपये यानी साढ़े आठ हजार रुपये महीना अर्थात लगभग 278 रुपये रोज होती है। इसकी घोषणा पिछले साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से की थी। अब तक एक करोड़ महिलाएं लखपति दीदी बन चुकी हैं। तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य रखा गया है। लखपति दीदी की दैनिक आय मनरेगा में काम करने वाली महिलाओं की दैनिक आय लगभग बराबर है। अलग-अलग प्रदेश में मनरेगा की दैनिक मजदूरी अलग-अलग है। जिन लोगों का गांव से वास्ता है, वे जानते हैं कि ग्रामीण महिलाओं की क्या स्थिति है।
प्रदेश में पांच हजार महिलाओं को ड्रोन पायलट बनाने का सपना देखने वाली सरकार को यह जरूर बताना चाहिए कि दस लीटर कीटनाशक के छिड़काव के लिए छह से दस लाख रुपये का ड्रोन खरीदने की हैसियत जिस महिला के पास होगी, वह क्या गरीब महिलाओं की श्रेणी में आएगी? माना कि छह से दस लाख रुपये में आने वाले ड्रोन की खरीद में सरकार सहायता करेगी लेकिन क्या यह किसी किसान के लिए तनिक भी फायदेमंद सौदा है? एक एकड़ फसल पर कीटनाशकों के छिड़काव में एक से डेढ़ घंटे लगने वाले समय में थोड़ी बहुत बचत कर भी ली गई, तो क्या मात्र इसके लिए डेढ़ से दो लाख रुपये की पूंजी फंसाना उचित है?
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वैसे भी जैसे-जैसे ड्रोन के छिड़काव की क्षमता बढ़ती जाएगी, ड्रोन की कीमत में इजाफा होता जाएगा। चलिए यह भी मान लिया कि ड्रोन से खेत पर निगाह रखी जा सकेगी। लेकिन ड्रोन सिर्फ निगाह रखेगा, फसल की चोरी या पशुओं के खेत में पहुंचकर नुकसान पहुंचाते समय उन्हें रोक तो नहीं पाएगा। पूरे देश में जिन एक करोड़ महिलाओं के लखपति दीदी बनने के दावे किए जा रहे हैं, यदि उनकी ठीक से जांच की जाए, तो विश्वास है कि वे महिलाएं निकलेंगी जिनका परिवार मध्यम आयवर्ग में आता होगा।
इनका परिवार किसी न किसी रूप में शासन, प्रशासन या रसूखदार लोगों से जुड़ा हुआ होगा। गरीब और अशिक्षित महिलाएं लखपति दीदी बनने का सपना देख ही नहीं सकती हैं क्योंकि लखपति दीदी योजना में शामिल होने के लिए सबसे पहले उन्हें अपना बिजनेस प्लान सबमिट करना होगा। किसी तरह बिजनेस प्लान भी सबमिट कर दिया, तो स्वयं सहायता समूह में शामिल होना, एक और मुसीबत। गांव या पड़ोसी गांव में कोई स्वयं सहायता समूह संचालित न हो, तो उनका अवसर खत्म समझो। हां, इस योजना से महिला जााति का भला होगा, यह बात जरूर है।
-संजय मग्गू
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