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स्त्री को अपनी गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करके तो देखिए

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संजय मग्गू
महिला की पूजा की जाए या उसे अपने बराबर मानकर बराबरी का दर्जा दिया जाए, उसका सम्मान किया जाए? यह सवाल अगर इक्कीसवीं सदी में उठ रहा है, तो इसका यही मतलब है कि समाज में स्त्री आज भी पुरुषों की बराबरी पर नहीं खड़ी है। अगर स्त्री पुरुषों के बराबर नहीं खड़ी है, तो वह पुरुषों के समान  बराबर कैसे हो सकती है? इस सवाल पर विचार करना बहुत जरूरी है। दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने एक कार्यक्रम में कहा है कि समाज में लैंगिक समानता अभी अधूरी है। महिलाओं को पूजा की नहीं, सम्मान की जरूरत है। जहां महिलाओं का सम्मान होता है, वहां देवता वास करते हैं। चीफ जस्टिस की बात तो काफी हद तक सही है। अगर सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर बात की जाए तो स्त्री चाहे अमेरिका की हो, ब्रिटेन की हो, भारत, रूस, चीन, जापान की हो, सबकी दशा एक जैसी है। शोषण का रूप अलग-अलग हो सकता है, लेकिन सदियों से स्त्री का शोषण जारी है, शायद आगे भी जारी रहेगा। इसके सामाजिक कारण भी हैं और आर्थिक भी। हमारे समाज में सदियों से स्त्री को कमतर माना जाता रहा है। स्त्री चाहे कामकाजी हो या गृहणी, आज भी पुरुषों से बराबरी के लिए जद्दोजहद करती दिखाई देती है। अगर स्त्री मुक्त होने की कामना भी व्यक्त कर दे, तो यह समाज उस पर ऐसे-ऐसे लांक्षन लगाता है कि वह या टूट जाती है या फिर शरणागत हो जाती है। लांक्षन लगाने वालों में स्त्रियां भी शामिल होती हैं। यह समाज है। दिन रात परिवार के लिए खटने वाली स्त्री को वैसे तो कानूनन सारे अधिकार हासिल हैं, लेकिन वे सारे अधिकार वास्तविक रूप से हासिल हैं? इसकी पड़ताल जरूरी है। पूजा किसकी होती है? मिट्टी या पत्थर की बनी भगवान या देवी की मूर्ति की पूजा का विधान सदियों से है। लेकिन स्त्री तो पत्थर या मिट्टी की बनी नहीं होती है। वह भी पुरुष के ही समान हाड़-मांस की बनी होती है। उसमें भी भावनाएं होती हैं पुरुषों की तरह। वह भी सांस लेती है, उसे भी अपने साथ बुरा होने पर पीड़ा होती है। वह भी पुरुषों की तरह उन्मुक्त होकर स्वतंत्रता का आनंद लेना चाहती है। वह भी प्रेम करना चाहती है, घूमना चाहती है, वह भी  अपना जीवन अपनी इच्छानुसार जीना चाहती है। गर्भधारण करने की प्रकृति द्वारा दी गई जिम्मेदारी के अलावा शारीरिक रूप से वह पुरुषों के समान है। लेकिन उसका भाग्य पुरुषों के समान नहीं होता है। स्त्री को अपनी पूजा नहीं करानी है। उसे देवी मत मानिए। बस, उस पर इतनी कृपा कर दीजिए कि उसे भी इंसान होने की मान्यता दे दीजिए। उसे मुक्त कर दीजिए अपनी पुरुषवादी मानसिकता से। फिर देखिए, स्त्री कैसे इस दुनिया को स्वर्ग बना देती है। प्रकृति ने उसे जन्म देने का गुण दिया है। इस गुण का उपयोग वह इस संसार को नया रूप देने में लगा दे, तो आज से कहीं ज्यादा बेहतर दुनिया बसाकर वह दिखा देगी। उसे अपनी गुलामी से मुक्त करके तो देखिए।

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