अशोक मिश्र
भारतीय महिलाओं की वर्कफोर्स में भागीदारी की बात की जाए, तो उनकी स्थिति काफी दयनीय है। कुल वर्कफोर्स में उनकी भागीदारी सिर्फ 37 प्रतिशत ही है। उसमें भी उच्च पदों पर तो उनकी भागीदारी और भी कम है। इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की हालिया रिपोर्ट तो यही बताती है कि हमारे देश में 53 प्रतिशत महिलाएं नौकरी ही नहीं कर रही हैं। इसका कारण हमारे समाज के आंतरिक ढांचे में ही छिपा हुआ है। आज भी देश में महिलाओं की पढ़ाई खत्म होते ही शादी कर देने की मानसिकता वाले मां-बाप कम नहीं हैं। अकसर बातचीत के दौरान ऐसे लोगों का यही कहना होता है कि शादी के बाद नौकरी करनी हो, तो करे। हम अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में पीछे क्यों रहें? शादीशुदा नौकरी करने वाली महिलाओं का प्रतिशत हमारे देश में सिर्फ 32 प्रतिशत ही है। देश में ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है जिन्हें शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ती है। ससुराल वाले अपनी बहू से नौकरी कराना, उचित नहीं मानते हैं। शादी के बाद लगभग 13 फीसदी भारतीय महिलाओं को ससुराल वालों के चलते अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है।
हां, इस मामले में थोड़ी राहत उन महिलाओं को जरूर मिल जाती है जो सरकारी नौकरी में हों। सरकारी नौकरी को भारतीय समाज में काफी सम्मानजनक माना जाता है। कामकाजी महिलाओं को समाज और परिवार से प्रोत्साहन नहीं मिलता है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि पिछले एकाध दशक से महिला स्टार्टअप्स में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन लाभ के मामले में या फंडिंग के मामले में उनकी स्थिति अभी बहुत खराब है। यदि हम सन 2021 की बात करें, तो भारतीय स्टार्टअप्स के मामले में कुल फंडिंग का केवल 0.3 प्रतिशत हिस्सा ही महिलाओं को हासिल हुआ था। यह भारतीय महिलाओं की दशा और दिशा बताने के लिए पर्याप्त है। कार्यबल यानी वर्क फोर्स में पुरुष और महिला की कमाई में भी जमीन आसमान का अंतर पाया जाता है। पुरुषों के मुकाबले में महिलाओं को सिर्फ चालीस फीसदी वेतन या मानदेय दिया जाता है। महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले में साठ फीसदी मेहनताना कम दिया जाता है।
वहीं नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश में 98 प्रतिशत शादीशुदा पुरुष या तो कहीं नौकरी करते हैं या फिर अपना कोई कारोबार चलाते हैं। हमारे देश में लगभग 16.6 करोड़ कामकाजी महिलाएं हैं। इंडियन डेवलेपमेंट रिपोर्ट के मुताबिक इन 16.6 करोड़ महिलाओं में से 90 फीसदी महिलाएं असंगठित क्षेत्र में आती हैं जिन्हें कोई भी आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा हासिल नहीं होती है। भवन निर्माण, कृषि या इसी तरह के अन्य सेक्टर में काम करने वाली इन महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक तो इन्हें समय पर मेहनताना नहीं मिलता है। ऊपर से अगर मांगा तो इनके साथ हिंसा होती है। इनको दिहाड़ी पर रखने वाला ठेकेदार या नियोक्ता मारपीट करने के साथ-साथ कई बार यौन शोषण भी करता है। यह स्थितियां महिलाओं को असंगठित क्षेत्र में काम करने से रोकती हैं।
इसके बावजूद देश में महिलाओं के पक्ष में बहुत कुछ सकारात्मक हो रहा है। आजादी के बाद से लेकर कई दशकों तक महिलाओं की भागीदारी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में लगभग शून्य थी। सन 2000 तक टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति नौ फीसदी थी। सन 2000 बाद हालात बदले और अब महिलाओं की भागीदारी लगभग 35 प्रतिशत हो गई है। 20 लाख से भी अधिक महिलाएं इस क्षेत्र में अपनी सफलता के परचम लहरा रही है। लेकिन भारत की आबादी के हिसाब से यह अपर्याप्त है। महिलाओं की वर्कफोर्स में भागीदारी यदि बढ़ाई जाए, तो स्वाभाविक रूप से हमारे देश की जीडीपी बढ़ेगी।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
अशोक मिश्र
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