जीवन में संतुलन बहुत जरूरी है। व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ समाज का भी ध्यान रखना चाहिए। यदि व्यक्ति समाज की जरूरतों को जान समझकर उनको दूर करने का प्रयास करता रहेगा, तो समाज में सुख-शांति बनी रहेगी। इस बात को बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं। इस संबंध में एक प्रेरक प्रसंग है। किसी राज्य का एक राजा था। एक दिन वह शिकार खेलने निकला और संयोग से वह अपने साथियों से बिछड़ गया।
वह अपनी राजधानी का रास्ता खोजता हुआ वन से गुजर रहा था कि तभी उसकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी। वह सिर पर लकड़ियों का गट्ठर रखे हुए बांसुरी बजाते हुए अपने घर की ओर जा रहा था। राजा को ताज्जुब हुआ कि इतना बोझ सिर पर होने के बावजूद वह मधुर धुन में बांसुरी बजाता जा रहा है।
राजा ने उसका पास जाकर उसके कामधाम और कमाई के बारे में पूछा। लकड़हारे ने कहा कि मैं रोज चार मुद्राएं कमाता हूं। एक मुद्रा मैं कुएं में फेंक देता हूं। दूसरी से कर्ज चुका देता हूं। तीसरी मुद्रा में उधार दे देता हूं। चौथी मैं जमीन में गाड़ देता हूं। राजा को लकड़हारे की बात समझ में नहीं आई। दूसरे दिन उसने अपने दरबारियों से लकड़हारे की कमाई समझाने का तरीका बताते हुए विस्तार से समझाने को कहा। कोई नहीं समझा पाया, तो लकड़हारा बुलाया गया।
लकड़हारे ने कहा कि एक मुद्रा कुएं में फेंक देता हूं का मतलब परिवार के भरण पोषण पर खर्च करता हूं। दूसरा कर्ज चुका देता हूं का तात्पर्य है कि मैं उस मुद्रा को अपने माता-पिता पर खर्च कर देता हूं। तीसरी मुद्रा मैं अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर खर्च करता हूं। चौथी मुद्रा मैं लोगों की मदद में खर्च करता हूं। यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने वैसा ही जीवन जीने का संकल्प लिया।