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निर्बल की जोरू होकर रह गया है गजा क्षेत्र

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अशोक मिश्र
अवध क्षेत्र में एक कहावत कही जाती है-निबरेक जोय, सबकै सरहज। यानी निर्बल आदमी की पत्नी सबकी सलहज (साले की पत्नी) लगती है। आज गजा क्षेत्र की यही हालत हो गई है। जिसको देखो, सभी उनकी हालत सुधारने का दम भर रहे हैं। 7 अक्टूबर 2023 से हमास- इजरायल युद्ध में गजा क्षेत्र पूरी तरह तबाह हो चुका है। अब तक 48 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। लाखों लोग अपनी धन संपत्ति छोड़कर दूसरे देशों में शरण लेने को मजबूर हो गए हैं। पूरी तरह ध्वस्त हो चुके गजा क्षेत्र पर अब अमेरिका और अरब लीग की निगाहें गड़ चुकी हैं। अमेरिका के दूसरी बार चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि गजा क्षेत्र अमेरिका को सौंप दिया जाए। वह उसे एक पर्यटन क्षेत्र जैसा बनाएंगे। गजा क्षेत्र में वह सब कुछ होगा, जो अमीरों की बस्ती में होना चाहिए। ऐसी स्थिति में गजा क्षेत्र में रहने वाले 24-25 लाख कहां जाएंगे? इसका भी जवाब है डोनाल्ड ट्रंप के पास। उनका सुझाव है कि गजा के लोगों को मिस्र जैसे पड़ोसी देशों में बसा दिया जाए। पड़ोसी देशों को गजा वालों की मदद करने के लिए आगे आना चाहिए।
अब गजा क्षेत्र के लिए अरब लीग ने भी एक योजना पेश की है। चार मार्च को मिस्र की राजधानी काहिरा में अरब लीग देशों की एक बैठक हुई थी जिसमें पूरी तरह ध्वस्त हो चुके गजा के पुनर्निर्माण के लिए 53 अरब डॉलर की एक योजना पेश की गई है। गजा के पुनर्निर्माण के लिए बुलाई गई समिट में जॉर्डन के किंग अब्दुल्लाह द्वितीय, बहरीन के किंग हमाद बिन इसा अल खलीफा, कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमाद अल थानी, कुवैत के क्राउन प्रिंस शेख सबाह खालिद अल-हमाद अल-सबाह, सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान और यूएई के उपराष्ट्रपति शेख मंसूर बिन जायेद अल नाह्यान के साथ-साथ लेबनान, सीरिया, इराक, सूडान और लीबिया के राष्ट्रपति भी आए थे। इन सबने मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सीसी की योजना पर बड़ी गहराई से विचार विमर्श किया और अंतत: पांच साल की योजना को मंजूरी भी दे दी।
इस मामले में किसी ने भी गजा क्षेत्र के लोगों से यह पूछने की जुर्रत नहीं की कि उन्हें यह योजना मंजूर है कि नहीं। उनको अपना पुनर्निर्माण कराना है कि नहीं। अमेरिकन राष्ट्रपति ट्रंप और अरब लीग के देश जिस तरह गजा क्षेत्र में रुचि ले रहे हैं, उसे देखते हुए गजा  क्षेत्र की स्थिति किसी कालोनी में खाली प्लॉट की तरह प्रतीत हो रहा है जिस पर अड़ोस-पड़ोस के लोगों की निगाह रहती है। जो बराबर इस ताक में रहते हैं कि कहीं से भी मौका मिले और वह खाली प्लॉट पर अपना कब्जा जमाएं। मिस्र की जिस योजना पर अरब लीग ने मंजूरी दी है, वह अमेरिका और इजराइल की इच्छा और सहायता के बिना पूरा हो सकता है? अरब लीग में शामिल देश 53 अरब डॉलर खर्च कर पाने की हैसियत में हैं भी या नहीं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सऊदी अरब और यूनाइटेड स्टेट अमीरात के कर्ताधर्ता अमेरिका के ही इशारे पर नाचते हैं। अब अगर अमेरिका इजाजत न दे, तो क्या अमेरिका का विरोध करते हुए मिस्र की योजना में पूंजी निवेश करने की स्थिति में यह दोनों देश होंगे? सऊदी अरब और यूएई की सहायता के बिना अरब लीग द्वारा स्वीकृत यह योजना कतई पूरी होने वाली नहीं है। पूरी अरब लीग अमेरिका समर्थक है। कुछ देश इसके अपवाद हो सकते हैं। सच कहा जाए तो ट्रंप और अरब लीग फलस्तीनियों को लेकर गंभीर नहीं हैं। वह पुनर्निर्माण के नाम पर अपनी पूंजी निवेश कर मुनाफा कमाना चाहते हैं। गजा क्षेत्र का विकास कोई दानखाते से तो करेंगे नहीं। आज पैसा लगाएंगे, तो कल वसूलेंगे भी। गजा के प्रति इनका जो प्रेम उमड़ रहा है, उसके पीछे स्वार्थ है। महाकवि तुलसी दास बहुत पहले कह गए हैं कि सुर, नर, मुनि की याही रीति, स्वारथ पाय, सबै सब प्रीति।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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