उर्दू की एक कहावत है कि हिम्मते मर्दा, मदद-ए-खुदा। कहने का मतलब है कि अल्लाह उसी की मदद करता है जो हिम्मती है। जो खुद की मदद करना चाहता है। अल्लाह या भगवान कभी किसी आलसी, काहिल या निकम्मे आदमी की मदद नहीं करता है। दुनिया में बहुत सारे ऐसे लोग मिल जाते हैं जिन्होंने हिम्मत और जुनून से अपना जीवन बदल दिया और लोगों के सामने एक मिसाल पेश की। ऐसा ही था जर्मनी के प्रशिया का रहने वाला यूनेज सैंडो।
1867 में जन्मे सैंडो ने बचपन में अनियमित जीवन जीकर अपना स्वास्थ्य खराब कर लिया। बहुत दुबला पतला था सैंडो। उसको देखकर उसके मां-बाप बहुत दुखी रहा करते थे। एक दिन की बात है। वह अपने पिता के साथ म्यूजियम देखने गया। उसने वहां देखा कि रोम की गैलरी में प्राचीन काल के बलिष्ठ पुरुषों की मूर्तियां देखीं तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। वह सोच भी नहीं पा रहा था कि कोई इंसान इतना बलिष्ठ हो सकता है।
उसने अपने पिता से पूछा कि क्या यह मूर्तियां काल्पनिक पुरुषों की हैं? पिता ने उत्तर दिया कि ये मूर्तियां वास्तविक पुरुषों की हैं। अतीत में ऐसे बलिष्ठ लोग होते थे और आज भी बहुत सारे लोग इतने बलिष्ठ होते हैं। यदि व्यक्ति अपने मन में ठान ले, तो बलवान हो सकता है। यह सुनकर सैंडो ने उसी दिन से अपने शरीर पर ध्यान देना शुरू कर दिया। वह बाड़ी बिल्डिंग पर ध्यान देने लगे। नतीजा यह हुआ कि वह धीरे-धीरे बाडी बिल्डिंग क्षेत्र में मशहूर होने लगे। उन्होंने बाडी बिल्डिंग की कई विधाओं की शुरुआत की। वह एक विशेष तरह की बनियान पहनते थे। उनके नाम पर ही सैंडो बनियान का चलन हुआ। भारत में वह 1905 में आए थे। भारत में सैंडो बनियान का चलन इसके बाद ही हुआ। यूनेज ने दुनिया के कई देशों का भ्रमण किया और प्रतियोगिताएं जीती।
-अशोक मिश्र