मुख्यमंत्री मनोहर लाल पिछले काफी दिनों से सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता जैसे-जैसे जनसंवादों को लेकर बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे विपक्षी दलों में बेचैनी बढ़ती जा रही है। उन्होंने सीएम के जनसंवादों को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। वैसे विपक्ष का यह हमला राजनीतिक लाभ उठाने के लिए है। यह सही है कि सीएम मनोहर लाल ने थोड़ी देर से जनसंवाद की परंपरा शुरू की। यदि वह सरकार बनने के कुछ दिन बाद सक्रिय हो गए होते तो शायद अब तक प्रदेश की तस्वीर कुछ और ही होती। विपक्षी दलों का आरोप है कि जनसंवादों में पुलिस का इतना कड़ा पहरा होता है कि आम आदमी का वहां तक पहुंच पाना आसान नहीं होता है। आधे से ज्यादा तो भाजपा कार्यकर्ता होते हैं।
सवालों और समस्याओं पर बात ही नहीं होती है। बस मुख्यमंत्री अपने मन की बात कहते रहते हैं। इन कार्यक्रमों में महिलाओं का सम्मान भी नहीं किया जाता है। विपक्षी दलों का इशारा शायद सात सितंबर को हुई घटना की ओर है। सात सितंबर को एक जनसंवाद कार्यक्रम में एक महिला अपने पड़ोसी गांव भटोल जट्टां में कारखाना लगाने की मांग करती है। इस पर मुख्यमंत्री कहते हैं कि इस बार जब चंद्रयान-4 भेजा जाएगा, तो तुम्हें उसमें भेज दिया जाएगा। अन्य जनसंवादों में भी कुछ इसी तरह की छिटपुट घटनाएं जरूर हुई हैं।
पहली बात तो यह है कि मुख्यमंत्री की मंशा उस महिला को अपमानित करने या उपहास उड़ाने की नहीं थी। वह एक परिहास था। हालांकि दूसरे दिन ही मुख्यमंत्री ने उस महिला से माफी भी मांग ली थी और महिला ने उन्हें माफ भी कर दिया था। ऐसी स्थिति में यह मामला यहीं खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन राजनीतिक दल इस मामले को अपने पक्ष में भुनाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। वह इस बात को समझने को तैयार ही नहीं है कि इन्हीं जनसंवादों की बदौलत हजारों लोगों की समस्याओं का निराकरण हुआ है।
लोग सीधे अपने मुख्यमंत्री से संवाद स्थापित कर रहे हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों को जनसंवाद कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री से संवाद कायम करने में दिक्कत हुई हो क्योंकि प्रोटोकाल और सुरक्षा की भी ध्यान रखना पड़ता है। अब तक मुख्यमंत्री दस जिलों में जनसंवाद कार्यक्रमों का आयोजन कर चुके हैं। जनसंवाद कार्यक्रमों के दौरान लोगों की समस्याओं का तुरंत निराकरण करने का प्रयास किया जाता है। यदि कोई समस्या तत्काल नहीं सुलझाई जा सकती है, तो अधिकारियों से जल्दी से जल्दी हल निकालने को कहा जाता है।
शिकायत मिलने पर जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान ही अधिकारियों और कर्मचारियों को दंडित भी किया गया है। यदि किसी कर्मचारी या अधिकारी की गलती पाई गई है, तो उसे दंडित करने में भी मनोहर लाल ने तनिक भी संकोच या देरी नहीं की है। जिन लोगों की समस्याएं इन कार्यक्रमों में हल हुई हैं, उनसे जाकर पूछिए कि वे इसे कितना सफल मानते हैं। ऐसी हालत में जनकल्याणकारी कार्यक्रमों की आलोचना नहीं करनी चाहिए।
संजय मग्गू