महात्मा बुद्ध पूरी दुनिया में शायद पहले दार्शनिक थे जिन्होंने दुख का कारण खोजने का प्रयास किया था। उन्होंने इस बात का पता तो लगा लिया था कि सांसारिक दुखों का कारण निजी संपत्ति है, तभी तो उन्होंने अपने बनाए संघ में निजी संपत्ति के नाम पर एक भिक्षा पात्र और दो जोड़ी कपड़ों को ही मान्यता दी। महात्मा बुद्ध ने लोगों को पाखंड और तमाम तरह के कर्मकांड से दूर रहने की सलाह दी। अहिंसा उनके उपदेशों का मूल आधार हुआ करता था। एक बार की बात है। वे अपना चातुर्याम मास जेतवन में बिता रहे थे।
एक दिन जब वे पर्णशय्या पर लेटे हुए थे, तो उनके एक शिष्य ने कहा कि प्रभु! आज आपको अच्छी नींद आई? बुद्ध ने शांत भाव से कहा कि हां, आज मुझे अच्छी नींद आई। तब शिष्य ने कहा कि लेकिन प्रभु! कल रात तो ठंडा बहुत था, बर्फ भी गिर रही थी। आपकी पर्णशय्या भी बहुत पतली थी। फिर आपको किस तरह अच्छी नींद आई? महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए कहा कि यदि किसी धनिक के पुत्र को एक अच्छे कमरे में सोने दिया जाए जिसमें खूब मुलायम बिस्तर हो। सुख-सुविधा के सारे साधन मौजूद हों। कमरे में इत्र छिड़का गया हो, तो क्या उसे अच्छी नींद आएगी? शिष्य ने तत्काल उत्तर दिया कि यकीनन अच्छी नींद आएगी।
महात्मा बुद्ध ने अगला सवाल किया कि यदि उस धनिक पुत्र को कोई गंभीर बीमारी हो जाए, तब? शिष्य ने कहा कि तब वह अच्छी नींद या सुकून की नींद नहीं सो सकेगा। महात्मा बुद्ध ने फिर अगला सवाल किया, यदि उस धनिक पुत्र को कोई मानसिक रोग हो जाए, तब? शिष्य ने फिर वहीं जवाब दिया, जो दूसरे प्रश्न के समय दिया था। तब बुद्ध बोले कि महत्वपूर्ण शैय्या नहीं है, जरूरी है मन की शांति। यदि चित्त शांत हो, तो पर्णशय्या पर भी नींद आ जाएगी। नींद तो कहते हैं कि कांटों पर भी आ जाती है। यह सुनकर शिष्य की जिज्ञासा शांत हो गई।
अशोक मिश्र