देश रोजाना: कोई रिश्ता तब ही मजबूती के साथ टिका रहता है, जब उस रिश्ते में बंधी गांठ पक्की हो और यही बात झारखंड की सियासत में लागू होती है। बिहार राज्य से अलग हुआ राज्य झारखंड वहां भी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर 14 लोकसभा सीटों के लिए चुनावी जीत का सीधा-साधा फार्मूला है। झारखंड में देखा जाए तो जिस रिश्ते की गांठ मजबूती से बंधी होगी उतनी ही उसके जीतने की संभावना ज्यादा होगी क्योंकि अगर पिछली बार की बात की जाए तो एनडीए गठबंधन की मजबूत पकड़ थी इसलिए चुनाव में भी एनडीए के पक्ष में परिणाम अच्छा देखने को मिला और अगर कांग्रेस झामुमो राजद गठबंधन की बात की जाए तो उनके रिश्तो की गांठ धीरे थी और उसका नुकसान भी उनको उठाना पड़ा, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे के वक्त एनडीए ने अपना रिश्ता यानी कि गठजोड़ मजबूत कर लिया था बीजेपी ने यहां से 14 में से 13 सीटों पर लड़ने का फैसला भी लिया था
एक सीट अपने सहयोगी आजसू पार्टी को दे दी गई थी और सब और इस समिति का फायदा भी रहा इसका नतीजा बेहतर निकला और बीजेपी को 11 सीटों पर जीत हासिल हुई और वही एक सीट आजसू को मिली कांग्रेस झामुमो गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर बात नहीं बनी और उनका जो पेज फस गया था। उसका नुकसान भी उन्हें भुगतना पड़ा 3 सीटें चतरा गोंडा और धनबाद में इसका परिणाम देखने को मिला। 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन किया गया था 2000 में बिहार से इसे अलग किया गया था। साल 2005 में झारखंड बनने के बाद सबसे पहला चुनाव हुआ था जिसमें बीजेपी 30 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी हालांकि तब उसे बहुमत का आंकड़ा नहीं मिला था और इस चुनाव में जेएमएम 17 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर ही थी, तो वहीं साल 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी बहुमत तक नहीं पहुंच पाई थी।
बीजेपी और जेएमएम 18 अट्ठारह सीटें जीतने में सफल हो पाई थी और वहीं कांग्रेस 14 और जेवीएम 11 सीटें हासिल कर पाई थी, साल 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 81 में से 37 सीटों पर दर्ज की थी जीत बीजेपी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन यानी एजे एस यू ने मिलकर राज्य में सरकार बनाई थी। हालांकि चुनाव के बाद जेवीएम के 6 विधायकों और एक दूसरे अन्य विधायक ने बीजेपी का दामन थाम लिया था इसके बाद बीजेपी का आंकड़ा बहुमत के पार 44 तक पहुंच गया था। इन्हीं आंकड़ो से समझी जा सकती है झारखंड की राजनीति।