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अब शायद ही कोई कहता हो, आंखों आंखों में बात होने दो

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संजय मग्गू                                                                                                       किसी से आंखें मिलाकर आंखों से बात करना एक कला है। लगता है कि यह कला धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएगी। कविवर बिहारी का दोहा है, कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात/भरे भौन में करत हैं नैन ही सों बात। प्रेमी-प्रेमिका भरे हुए भवन में ही आंखों आंखों में बात कर लेते थे। फिल्म ‘आंखों आंखों में’ का एक गीत है जिसके बोल हैं-आंखों आंखों में बात होने दो। सवाल यह है कि यह कला विलुप्त क्यों हो रही है? इसका कारण मोबाइल है। अब प्रेमिका और प्रेमी भी आंखों से बात करने की जगह चैटिंग करते हैं। आॅन स्क्रीन रोमांस करते हैं, दिल की बात कहते हैं। डिजिटल गैजेट्स की बीप्स और अलर्ट्स ने हमें ऐसा बांध लिया है कि हमें किसी की ओर देखने की फुरसत ही नहीं रह गई है। ऐसा नहीं है कि आंखों से सिर्फ प्रेमी प्रेमिका ही बात करते हैं या करते थे। कोई भी किसी से आंखों से बात कर सकता है। चेहरे और आंखों की भावभंगिमा एक भाषा का काम करती है। इसको बांचने की कला बड़े अभ्यास से आती है। आंख से  आंख मिलना किसी गूढ़ आर्ट से कम नहीं है। यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण नहीं है। अगर किसी बच्चे से बातचीत की जाए, तो ज्यादातर बच्चे बात करते हुए इधर-उधर देखने लगते हैं। उन्हें अपनी नजरों को किसी चेहरे या एक जगह पर स्थिर रखने में कठिनाई महसूस होती है। यही वजह है कि आजकल के बच्चों को बातें कम समझ में आती हैं। जब दो लोग आपस में बात करते हुए एक दूसरे के चेहरे की ओर देखते हैं, स्नायु गतिविधियों का एक दूसरे से समन्वय बेहतर हो जाता है। वे एक दूसरे से गहराई से जुड़ जाते हैं। उनकी आपसी समझ बढ़ जाती है। कुछ बात उनकी भाषा समझा देती है, बाकी बचा हुआ भाव चेहरे की भंगिमा समझा देती है। अगर आपसी समझदारी बढ़ानी है, तो सबसे पहले अपने परिचितों, परिजनों और नाते-रिश्तेदारों के साथ कुछ समय तक गैजेट मुक्त बात करनी होगी। रोज कुछ देर अपने परिवार के साथ बैठकर गुजारना होगा। उनकी समस्याएं सुननी होंगी, कुछ अपनी बतानी होंगी। यदि ऐसा कुछ नहीं है, तो आपस में बैठकर किस्से-कहानियां सुनाएं। इस दौरान सबकी सुनें, कुछ अपनी सुनाएं। फिर देखिए, आत्मीयता का स्तर कितना ऊंचा उठ जाता है। कभी दोस्तों के साथ बैठकर चेहरे के भावों के माध्यम से अपनी बात कहने का प्रयास करें। शुरुआत में थोड़ी दिक्कत हो सकती है, लेकिन एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि आप अपनी भाव भंगिमा से कुछ कहें और आपका दोस्त उसे समझ जाए। बस, भाव भंगिमा की भाषा को सीखने और समझने की जरूरत है। यह अभ्यास आंखों का संपर्क बढ़ाने के साथ बिना कोई बात कहे संचार कौशल को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है। सामने बोलने वाले के चेहरे की ओर देखते हुए यदि आप अपने चेहरे पर उत्सुक भाव लाते हैं, तो बात को समझने में काफी आसानी हो जाती है।

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