संजय मग्गू
फरीदाबाद में बेटे-बहू द्वारा चप्पल से की गई पिटाई से आहत बुजुर्ग ने आत्महत्या कर ली। इस बात का खुलासा उसके जेब में मिले सुसाइड नोट से हुआ है। वैसे यह घटना 22 फरवरी को हुई थी। 22 फरवरी को फरीदाबाद स्थित एसआरएस हिल्स सोसायटी की पांचवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। शुरुआत में इस आत्महत्या ही माना गया था। लेकिन जब इस मामले की गहराई से जांच की गई, तो बुजुर्ग की जेब से मिले सुसाइड नोट ने सारा राज खोलकर रख दिया। पुलिस जांच में सीसीटीवी फुटेज ने भी इस बात की तस्दीक की कि बुजुर्ग से उसके बेटे और बहू मारपीट करते थे। यह बेटे-बहू कोई अनपढ़ नहीं है, बल्कि समाज के सभ्य कहे जाने वाले लोग हैं। बेटा एक निजी कंपनी में कार्यरत है तो उसकी पत्नी अध्यापिका है। समाज में अध्यापक हो या अध्यापिका, बड़ा आदरणीय माना जाता है। अध्यापक को भगवान से भी बड़ा दर्जा दिया जाता है क्योंकि वह अपने शिष्यों को साक्षर बनाता है, शिक्षित करके उसे जीवन यापन के साथ-साथ भगवान को प्राप्त करने का मार्ग सुझाता है। माता पिता के बाद समाज का सबसे सम्मानित व्यक्ति अध्यापक ही होता है। अफसोस यह है कि बुजुर्ग की अध्यापिका बहू ने न तो बहू होने की गरिमा का ख्याल रखा और न ही बहू। एक महिला के लिए उसका ससुर पिता का दर्जा रखता है। विवाह के बाद ससुर ही उसका पिता की तरह संरक्षक होता है। ऐसी स्थिति में ससुर को चप्पल से पीटना किसी भी समाज में उचित नहीं माना जा सकता है। जब किसी के घर में कोई बच्चा पैदा होता है, तो मां-बाप सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं। उनकी प्रसन्नता का कारण यह होता है कि उनका वंश आगे बढ़ता है। हमारे समाज में वंश सिर्फ पुत्र ही आगे बढ़ाता है, यह मानसिकता अभी कुछ सौ साल में ही आई है। हमारे प्राचीन समाज में पुत्र और पुत्री दोनों को वंश बढ़ाने वाला माना जाता था। पिता और माता अपने बच्चों को लाड़-दुलार देते हैं। उनका अच्छे से पालन-पोषण करते हैं। उनकी अंगुली पकड़कर चलना सिखाते हैं, दुख-परेशानी खुद झेलकर अपने बच्चे को हमेशा अपनी हैसियत के अनुसार पालते-पोसते हैं ताकि जब वह खुद बूढ़े हो जाएंगे, तो यही बच्चे उनकी देखभाल करेंगे। जिस बेटे-बहू ने अपने पिता और ससुर के साथ यह व्यवहार किया है, यदि आने वाले दस-बीस साल बाद उनके बेटे-बहू यही व्यवहार करें, तो उन्हें कैसा लगेगा? अपनी मां को अपने दादा की चप्पल से पिटाई करते देखकर उस दंपति के बेटे-बेटियों ने (यदि बच्चे हों तो) कैसा महसूस किया होगा, यह तो नहीं कहा जा सकता है। यदि उनके बाल मन पर यह तस्वीर अंकित रह गई, तो बड़े होकर वह भी वैसा कर सकते हैं।
समाज के लिए कलंक सभ्य कहे जाने वाले बेटे-बहू की करतूत
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