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पराली जलाने पर सख्ती बरते मनोहर सरकार

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देश रोज़ाना: दिल्ली सहित हरियाणा और पंजाब के कुछ जिले भीषण वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। सबसे ज्यादा बुरी हालत दिल्ली-एनसीआर की है। दिल्ली सरकार और अदालतें बार-बार चेतावनी दे रही हैं। हरियाणा सरकार कई बार किसानों से अनुरोध कर चुकी है कि वे खेतों में पराली न जलाएं। लेकिन किसान हैं कि मानने को तैयार नहीं हैं। तमाम सख्ती के बावजूद हरियाणा और पंजाब में धड़ल्ले से पराली जलाई जा रही हैं। अब सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए सख्ती बरतने का फैसला किया है। सच तो यह है कि जिन अधिकारियों पर पराली जलने से रोकने का जिम्मा है, वही लापरवाही बरत रहे हैं। वे मौके पर पहुंचकर किसानों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, इसी वजह से घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

पिछले दो सालों की अपेक्षा हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में भारी बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2021 और 2022 में क्रमश: 196 और 83 पराली जलाने की घटनाएं प्रकाश में आई थीं। लेकिन इस साल तो दस ही महीने में पराली जलाने की 319 घटनाएं प्रकाश में आ चुकी हैं। अभी साल बीतने में दो महीने बाकी हैं। अक्टूबर और नवंबर में ही पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। हमारे प्रदेश के किसानों को पता नहीं क्या हो गया है कि वे जानने-समझने के बावजूद पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। यह वह अच्छी तरह से जानते हैं कि पराली जलाना प्रकृति के लिए काफी खतरनाक है। जब वायु गुणवत्ता सूचकांक बिगड़ेगा, तो इसकी चपेट में वे भी आएंगे, लेकिन इसके बावजूद वे अगर पराली जला रहे हैं, तो वे अपने साथ साथ दूसरे लोगों का जीवन संकट में डाल रहे हैं। जबकि सरकार ने पराली के उपयोग के बारे में शिक्षित-प्रशिक्षित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। पराली का छोटे पैमाने पर औद्योगिक उपयोग तो किया ही जा सकता है, लेकिन यदि खेत को जोतकर मिट्टी में मिला दिया जाए, तो वह एक अच्छी खाद बन सकती है।

पराली जलाने पर इसकी राख खेत की उर्वरता को खराब कर देती है। यह बात भी किसानों को समझनी चाहिए। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि प्रदेशों में जब से धान या गेहूं की फसल काटने का काम यंत्रों से होने लगा है, तब से पराली जैसी समस्याएं पैदा हुई हैं। इन प्रदेश में पहले बैलों का उपयोग खेती में किया जाता था। लोग खुद या मजदूर लगाकर धान की कटाई करते थे, तो वह जमीन की सतह से धान या गेहूं काटते थे। उसकी सिर्फ जड़ें ही जमीन के अंदर रह जाती थीं। उसको जोतने के बाद वह खाद बन जाती थी। पराली का उपयोग पशुओं को खिलाने, फूस की झोपड़ी आदि बनाने में हो जाता था। लेकिन अब न तो गांवों में बैल रहे, न ही झोपड़ियां रह गई। पराली किसानों के लिए एक बोझ बनकर रह गई।

-संजय मग्गू

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