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पार्किंग के लिए चंडीगढ़ की हरियाली से खिलवाड़ करना कतई उचित नहीं

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संजय मग्गू
चंडीगढ़ में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के सामने पार्किंग बनाने की योजना है। जिस जगह पर पार्किंग बननी है, उस जमीन पर बहुत सारे पड़े लगे हुए हैं। उसी जगह पर पार्किंग बनाने के लिए पेड़ों को काटना एक तरह से मजबूरी है। लेकिन चंडीगढ़ के लोगों को जब पेड़ों को काटने की जानकारी मिली, तो उन्होंने पेड़ों से चिपककर अपना विरोध दर्ज कराया। सेविंग चंडीगढ़ सिटीजन ग्रुप के सदस्यों ने यूटी प्रशासन से मिलकर अपनी योजना पर एक बार फिर विचार करने का अनुरोध किया है। हमारे देश में पेड़ों को बचाने और उनका संरक्षण करने की परंपरा बहुत पुरानी है। हिंदू धर्म में प्रकृति के प्रति सदियों से संरक्षणात्मक रवैया अख्तियार किया जाता रहा है। हमारे देश में नदियों, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं को पूजने की परंपरा रही है। हरियाली तीज, वट सावित्री व्रत पूजा, शादी विवाह के दौरान कुआं और नदी पूजन जैसी तमाम परंपराएं प्रकृति को संरक्षित करने के लिए ही बनाई गई थीं। असल में हिंदू धर्म में माना जाता है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है। यही वजह है कि हमारे पुरखों ने नदियों को मां मानकर पूजा अर्चना की। यह एक संदेश था कि नदियों को साफ रखना, उनका संरक्षण करना हमारा ही दायित्व है। हमारा इनके बिना गुजारा भी नहीं है। इसी तरह प्रकृति पूजा भी प्रकृति के संरक्षण का ही संदेश देती है। जहां तक चंडीगढ़ में पार्किंग का सवाल है, जिस तरह दिन-दूनी रात चौगुनी गाड़ियों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसको देखते हुए पार्किंग का होना बहुत जरूरी है। इस बात का शायद ही कोई विरोध करे, लेकिन यह भी सच है कि पार्किंग के लिए इतनी भारी मात्रा में पेड़ों का बलिदान भी कतई उचित नहीं है। पार्किंग थोड़ा हटकर भी बनाई जा सकती है। पार्किंग के लिए उस स्थान का भी चयन किया जा सकता है, जहां पेड़-पौधे बिलकुल न हों या न्यूनतम हों। एकाध पेड़ तो काटे जा सकते हैं, इससे अधिक पेड़ों को काटना पर्यावरण से खिलवाड़ करने जैसा है। इन पेड़ों को बचाने के लिए अतीत में न जाने कितने लोगों ने अपनी जान तक गंवाई है। लोगों ने कई दशकों तक पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलन किया है, मुसीबतें सही हैं, लेकिन अंतत: विजय हासिल की है। बात सन 1730 की है। सन 1730 में राजस्थान के खेजड़ली गांव की अमृता देवी और उनकी तीन पुत्रियों ने बिश्नोई समाज की महिलाओं के साथ पेड़ों से चिपक कर 363 लोगों ने अपने प्राण गंवा दिए थे। इसी तरह का उत्तराखंड (पहले उत्तर प्रदेश) के चमोली जिले में गौरा देवी और उनके साथियों के नेतृत्व में सन 1972 में चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी। अंतत: प्रदेश सरकार को चिपको आंदोलनकारियों के आगे झुकना ही पड़ा था। सेविंग चंड़ीगढ़ सिटीजन ग्रुप का उद्देश्य पवित्र है। यूटी प्रशासन को दूसरी जगह पर पार्किंग बनाने के लिए एक बार फिर विचार करना चाहिए।

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