संजय मग्गू
हवा, पानी और धूप पर सबका बराबर अधिकार है। भगवान ने इस मामले में किसी से भेदभाव नहीं किया है। बात सही भी है। ऐसा नहीं होता है कि खिली धूप में कहीं किसी पार्क में अगल बगल खड़े दो लोगों में से किसी को धूप लगे और दूसरे को नहीं। पहाड़ों की ओर से आ रही सुगधिंत हवा एक को लगे और दूसरे को नहीं। फिर तो हवा, पानी और धूप को स्वच्छ और जीवनदायी बनाने की जिम्मेदारी सबकी है। एक आदमी हवा को साफ रखने का भरसक प्रयास करे और दूसरा उसको प्रदूषित करता फिरे, तो फिर क्या होगा? सुप्रीमकोर्ट से लेकर केंद्र और राज्यों की सरकारें वायु और जल प्रदूषण को कम करने के उपाय खोजते-खोजते परेशान है। जलवायु परिवर्तन हमारे देश की अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं, हम सबके लिए संकट का कारण बनता जा रहा है, लेकिन हम पर कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है। जैसे हम आश्वस्त हैं कि जब जलवायु परिवर्तन की सुनामी आएगी, तो वह हमें बख्श देगी। दरअसल, आज जितनी भी प्राकृतिक आपदाए हैं, इनके कारण भी हम ही हैं और उपाय भी हमीं हैं। सदियों से हमारे पूर्वज प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहे हैं। वह सामूहिक रूप से प्रकृति संरक्षण में अपनी भूमिका निभाते थे और व्यक्तिगत जीवन में भी वह कोई ऐसा काम नहीं करते थे जिससे जल, हवा, मिट्टी और वनों को नुकसान पहुंचे। अपनी जरूरतों के लिए एक पेड़ काटते थे, तो दो पेड़ कहीं न कहीं वे रोप चुके होते थे। ऐसा करने के लिए कोई उनसे कहता नहीं था। यह उनकी सामाजिक जिम्मेदारी थी। लेकिन आज हम अपनी उसी सामाजिक जिम्मेदारी से विमुख हो रहे हैं। नतीजा सबके सामने है। हमारे देश के ज्यादातर शहरों की हवा दमघोंटू हो गई है। सांस लेने में तकलीफ हो रही है। कुछ लोग अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझते हुए कार्बन उत्सर्जन कम कर रहे हैं, पेड़-पौधे लगा रहे हैं, तो वहीं उनका ही पड़ोसी खुलेआम कुछ ऐसा कर रहा है, जिससे हवा प्रदूषित हो रही है, जल विषैला हो रहा है, मिट्टी खराब हो रही है। ऐसे में उन लोगों का श्रम तो व्यर्थ ही गया, जो वायु, जल और मिट्टी को खराब होने से बचाने का उद्यम कर रहे थे? मान लीजिए, आपके मोहल्ले के सौ आदमी पूरे मोहल्ले को सााफ सुथरा रखने का भरसक प्रयास करते हैं, कहीं कूड़ा-कचरा नहीं फेकते हैं, वह अपने घर का कचरा निर्धारित जगहों पर डालते हैं, स्थानीय निकाय की कचरा गाड़ी को व्यवस्थित ढंग से सौंप देते हैं। लेकिन उसी मोहल्ले में दस लोग ऐसे हैं जो अपने घर का कचरा लाकर कहीं भी डाल देते हैं, सड़कों पर बिखेर देते हैं, तो फिर क्या मोहल्ला साफ रह पाएगा? नहीं, मोहल्ले के यही दस लोग सौ लोगों की मेहनत पर पानी फेर देते हैं। ठीक यही बात वायु प्रदूषण पर लागू होती है, जल प्रदूषण पर लागू होती है, जलवायु परिवर्तन पर लागू होती है। दरअसल, यह सारी आपदाएं जब सबको परेशान करती हैं, तो इसका हल भी सामूहिक होकर ही खोजना पड़ेगा। जब तक पूरा समाज जलवायु परिवर्तन, जल और वायु प्रदूषण के खिलाफ उठकर खड़ा नहीं होगा, तब तक शहर के शहर गैस चैंबर बने रहेंगे, सुनामी आती रहेगी, नई-नई बीमारियां हमें परेशान करती रहेंगी।
प्राकृतिक समस्याओं का हल सामूहिकता में ही है
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